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छठ्ठा अधिकार
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धन्यकुमारने शुभ ध्यानपूर्वक रात्रि वहीं बिताई । सच कहा है- पुण्यवानोंको सब जगह लाभ ही हुआ करता है ।
उधर जब उन कन्याओंको धन्यकुमारके राक्षस भवनमें जानेका हाल मिला तो सबोंने यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली कि जो गति धन्यकुमारकी होगी वही हमें भी मंजुर है ।
रात्रि पूर्ण हुई, सबेरेका उजेला चमकमें लगा । इतने में धन्यकुमार भी प्रात:कालीन सामायिकादि क्रिया करके बहुत खुशीके साथ मकान से बाहर निकलकर शहर की ओर आने लगा ।
उसे धन लेकर शहरकी ओर आते हुये देखकर राजा बगेरहको बड़ा आश्चर्य हुआ । वे अपने दिल में विचारने लगे कि यह साधारण पुरूष नहीं है किन्तु नर- केशरी है । इसे कोई नहीं जीत सकता । यह बड़ा भारी पुण्य पुरुष हैं ।
यही समझकर श्रेणिक और अभयकुमार आदि आधी दूर तक उसके सामने गये और उसे बहुत सम्मानपूर्वक लाये । बाद - राजमहल में लिवा जाकर भूषण वस्त्रादिसे उसका सत्कार किया और पूछा
प्रेमपात्र ! कहो तो तुम किस उत्तम कुलरूप आकाश के विशाल चन्द्रमा हो और अकेले ही किस कामके लिये यहां आये हुये हो ?
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उत्तर में धन्यकुमार ने कहा- मैं उज्जयिनी में रहता हूँ और वैश्यकुलमें मेरा जन्म हुआ है तीर्थयात्रा करता? इधर आ गया हूं । यह सुनकर श्रेणिक बहुत खुश हुये और उसी समय वहुत धन खर्च कर अपने ही मकान में विवाह मण्डप तैयार करवाया और बहुत कुछ समारोह के साथ गुणवती आदि सोलह कन्याओंका धन्यकुमारके साथ विधिन
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