________________
सातवां अधिकार
घरके आगे खड़ा होकर मुनियोंकी वाट देखा करता और पात्रका समागम होनेपर विधिपूर्वक वडे विनय भावसे पवित्र आहार देता । भव्य पुरुषोके साथ सदा निर्ग्रन्थ साधुओको भक्ति सेवा पूजा वन्दना किया करता । उनके मुखसे श्रावक धर्म तथा मुनि धर्मका स्वरूप और तत्वोंका व्याख्यान सुनत: क्योंकि उसे विरागता बडी ही प्रिय थी।
जिस दिन अष्टमी तथा चतुर्दशी होती उस दिन सब राज काज छोडकर नियम पूर्वक उपवास किया करता क्योंकि उसे अपने पाप कर्म के नाश करने की बहुत चाह थी । मुनिकी तरह निराकुल होकर तीनों काल समता भावपूर्वक शुद्ध सामायिक करता था ।
उसने शंकादि दोषोंको अपने आत्मासे हटाकर और साथ हो निःशंकितादि आठ गुणोंको धारण कर सम्यग्दर्शनकी निर्मलता अच्छी तरह कर ली थी क्योंकि यही शुद्धि शिवसुखकी कारण है।
यह बात सब कोइ मानेगे कि ज्ञान, तीन लोकके पदार्थका प्रगट करने के लिए दीपक है सो धन्यकुमार भी अपने अज्ञानके हटाने के लिए बड़े२ बुद्धिमानोंके साथ ज्ञानका अभ्यास सदा किया करता था ।
अपने 'योग्य श्रावकके व्रतोंका निरतिचार हर वक्त पालन करता था । दिलमें धर्मके तथा धर्मके चिह्नोंका मनन किया करता था और सुखके लिये हरएकको धर्मका उपदेश दिया करता था । ____ अपने शरीरके द्वारा जहां तक उससे बनता था धर्मपालन करने में किसी तरहकी कमी नहीं रखता था। थोड़े में यों कह लीजिये कि धन्यकुमार मन, वचन, काय और कृत-- कारित अनुमोदनासे धर्ममय हो गया था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org