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श्री धन्यकुमार चरित्र हम हो इसके मारनेका कोई उपाय कर इसका अभिमान दूर करेंगे । - उत्तरमें श्रेणिकने किसी तरह पुत्रको समझानेके लिये कहा-वह क्या उपाय है जिससे इसे मार सकोगे ? राजकुमार बोला
शहरके बाहर राक्षसोंका एक स्थान है ! पहले उसमें कितने ही लोग राक्षसके हाथसे मारे गये हैं इसथिये “जो धीर पुण्यवान इस स्थानके भीतर जायगा उसके लिये आधा राज्य तथा पुत्री दी जायेगी ।"
शहर भर में ऐसा ढिंढोरा पिटवाना चाहिये सो उसे सनकर वह नियमसे अभिमानमें आकर उस मकानके भीतर जायगा सो ही मारा जावेगा । ___ पुत्रके विचारके माफिक श्रेणिकने ढिंढोरा पिटवा दिया। धन्यकुमारने उसे सुना फिर भला उस मकानके भीतर गये बिना उसे कैसे चैन पड़ सकता था? उसे बहुत लोगोंने मना भी किया परन्तु उसने एककी न सुनी और दोपहरके वक्त खेलता हुआ बिना आयासके जैसे अपने घर में जाना होता है उसी तरह निडर होकर राक्षस भवनमें चला गया ।
धन्यकुमारको देखते ही राक्षस उल्टा शांत हो गया और सामने आकर उसे नमस्कार किया। बाद सत्कारपूर्वक सुन्दर आसन पर बैठाकर विनयसे बोला
विभो ! आप मुझे अपना दास समझें । मैंने इतने कालतक खजांची होकर आपके इतने बड़े भारी मकानकी और धनकी रक्षा की । अब आप आ गये हैं सो अपना धन सम्हाल लीजिये, यह आपहीके पुण्यका कमाया हैं।
ऐसा कहकर सब धन धन्यकुमारके सुपुर्द कर दिया । और जब आप मुझे याद करेंगे तब हाजिर हो सकूगा, मैं आपका दास हूं इतना कहकर अन्तर्हित हो गया ।
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