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थो धन्यकुमार चरित्र उन फूलोंको अपने ही हाथोंसे बहुतसी सुन्दर२ मालायें बनाकर उन्हें खेलनेके लिये वनमें जाते हुये राजकुमारोंको दिखलाई ।
देखकर राजकुमारोंने मालाओंका जब मूल्य पूछा तो धन्यकुमारने एक हजार दीनार कहा । जब पुण्यका उदय होता है तब कहीं न कहींसे अपनी इच्छाके अनुसार कारण भी जरूर मिल जाते हैं । ठीक यही धन्यकुमारके लिये भी हुआ, सो उन राजपुत्रोंने एक हजार दीनारें देकर वे सब मालायें खरीद कर ली।
धन्यकुभारने दीनारें ले जाकर सेठको दे दी। सेठने अपना वचन पूरा करनेके लिये धन्यकुमारके साथ अपनी कन्याका विवाह कर दिया । ___इस तरह बुद्धिमान धन्यकुमारकी बहुत प्रशंसा सुनकर
और गुप्त रीतिसे उसके रुपको देखकर राजकुमारी गुणवती उसार जी जानसे मुग्ध हो गई । दिनोंदिन उसकी चिन्तासे उसका शरीर भी सूकने लगा।
एक दिन धन्यकुमार, मन्त्री आदि-बड़े२ लोगोंके पुत्रोंके साथ जूवा खेलता था सो उसने उन लोगोंको बातको बातमें जीतकर अभिमान रहित कर दिये।
वहीं पर श्रेणिक महाराजका पुत्र अभयकुमार भी बैठा हुआ था । उसे अपनी चतुरताका बड़ा घमंड था । उसके साथ कितने और भी धनुर्धारी योद्धा थे । सो वह धन्यकमारके साथ बाणके द्वारा लक्ष्य वेधने के लिये झगड़ा करने लगा बाद चन्द्रक यंत्रका वेधना निश्चित किया गया । यद्यपि इसका वेधना हरएकके लिये बड़ा ही कठिन है तो भी कमारने पुण्य प्रभावसे उसे वेधकर देखते२ राजकुमारको हरा दिया ।
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