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श्री धन्यकुमार चरित्र
यह मेरी बहनका पुत्र है इसलिये इसका अतिथि सत्कार अच्छी तरह होना चाहिये । कुसुमदत्तकी स्त्रीने यह समझकर कि यह भावी मेरा जवांई होनेवाला हैं इसलिये धन्यकुमारको स्नान और भोजन वगैरह बड़े प्रेमके साथ
करवाया ।
कुसुमदत्तको एक सुन्दरी कन्या थी । उसका नाम था पुष्पावती । सो वह धन्यकुमारके सौन्दर्यको देखकर उस पर मोहित हो गई ।
दूसरे दिन उसने यह विचार कर कि देख यह कितना बुद्धिमान है ? सो उसके विज्ञानादि गुणकी परीक्षाके लिये धन्यकुमार के सामने कुछ सुन्दरर फूल और सूत रख दिया । कुमार बुद्धिमान तो था ही सो उसने उन फूलोंकी अपनी चातुरीसे बहुत सुन्दर एक माला ग्रंथ दी ।
उन दिनों राजगृह श्रेणिक महाराज स्वामी थे, उनकी कांता थी चेलनी और गुणवती नामकी पुत्री थी ।
पुष्पावती उसी राजकुमारी के लिये प्रतिदिन फूलोंकी माला बनाकर ले जाया करती थी, किन्तु आज वह धन्यकुमारकी बनाई हुई माला लेकर गई ।
उसे देखकर राजकुमारी बोली- पुष्पावती ! इतने दिन तु हमारे घर क्यों नही आई ! उसने उत्तर दिया- सखि ! क्या करूं मेरे घर पिताजीको बहनका पुत्र आया हुआ है सो उसीको सेवामें लगी रहती हूं । यही कारण मेरे न आनेका है ।
जब राजकुमारीकी आंख उस माला पर पड़ी तो उसने पुष्पावती से पूछा- आज तो माला बड़ी ही सुन्दर दिखाई पड़ती हैं, कह तो किसने गूंथी है ? पुष्पावतीने कहा
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