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श्रो धन्यकुमार चरित्र
छठा अधिकार धन्यकुमारके राज्य लाभका वर्णन त्रिजगन्नाथनाथेभ्यो गरिष्टेभ्यो महागुणेः ।
परमेष्टिभ्य आत्माप्त्यै विश्वार्येभ्यो नमोऽन्वहम् ।। धन्यकुमार, मुनिराजरूपी चन्द्रमाके द्वारा उत्पन्न हुए जन्म जरा और मरण के नाश करनेवाले तथा शिवसुखके कारण धर्मामृतका पान कर बहुत सन्तुष्ट हुआ और साथ ही अपनी बुद्धिको धर्म में दृढ़ की ।
बाद मुनिराजको नमस्कार कर राजगृह जानेके लिए रवाना हुआ सों धीरे धीरे वहीं पहुँचकर शहरके बाहर एक बगीचा देखा । रास्तेकी थकावट मिटानेके अभिप्रायसे उसके भीतर चला गया । जाकर देखता है तो सारा बगीचा सूखा पड़ा हुआ है । यहां पर प्रसंगानुसार कुछ बगीचेके सम्बन्ध की कथा लिख दी जाती है
इस बागके मालिकका नाम कुसुमदत्त था । उसका जन्म वैश्य कुलमें हुआ था । यह राजकाज करनेवाले जितने लोग थे उन सबका स्वामी था । उसे सब मानते थे ।
जब उसने देखा कि बाग सारा सूख गया है तो उसे काटना चाहा किन्तु एक दिन उसे अवधि ज्ञानी मुनिराजके दर्शन हो गये । कुसुमदत्तने उन्हें नमस्कार कर पूछा
स्वामी ! मेरा 'उपवन सूख गया है सो वह फिर भी कभी फलेगा या नहीं ? उत्तरमें मुनिराजने कहावैश्यवर ! कोई पुण्यात्मा महापुरूष दूसरे देशसे आकर इस
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