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छठ्ठा अधिकार
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बागमें प्रवेश करेगा तभी यह फिरसे फल पुष्पादिसे समृद्ध होने लगेगा।
कुसुमदत्त मुनिराजके कहे अनुसार निश्चय कर तभीसे प्रतीक्षा करने लगा सो आज धन्यकुमारके प्रवेश मात्रसे सूखे सरोवर निर्मल जलसे भर गये और वृक्ष फल पुष्पादिसे नम्र हो गये । सच है पुण्यके प्रभावसे सब कुछ हो सकता है।
धन्यकुमार वहीं जिन भगवानका ध्यान कर और सरोवरमें से निर्मल जल पीकर किसी वृक्षके नीचे बैठ गया ।
जब यह हाल कुसुमदत्तने सुना तो उसे झटसे मुनिराजके . वचन याद हो आये । मुनिराजके चरणोंको परोक्ष नमस्कार कर बागमें आया और कुमारको बैठा हुआ देखकर उसे नमस्कार कर पूछा
बुद्धिमान ! क्या मुझे कुछ बातें बताकर कृतार्थ करेंगे? वे ये हैं-आप कौन हैं ? किस सुकुलमें आपका अवतार हुआ हैं और कहां से आप आ रहे हैं ?
कुमारने कहा-मैं वैश्य पुत्र हूं दूसरे देशोंमें घूमता हुआ इधर आ निकला हूँ और मैं जैन धर्मी हूं।
कुसुमदत्तने कहा-यदि ऐसा है तो मै भी तो जैनी हूं आपका हमारा धार्मिक सम्बन्ध हैं इसलिये हमारे यहां अतिथि होना स्वीकार करिये ।
धन्यकुमारने यह बात मान ली। बाद कुसुमदत्त, धन्यकुमारको बड़े सत्कारके साथ घर लिवा ले गया और उसकी प्रेम तथा भक्तिके साथ सेवा करनेके लिये अपनी. स्त्रीसे बोला
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