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पहिला अधिकार उत्पन्न हुये पापकर्मोंके विनाशके लिये और शुभ कर्मको समुपलब्धि के लिये शुद्धिपूर्वक सामायिक तथा महामन्त्र कार सचितवन करते हैं ॥४३॥ __ इसी प्रकार और २ शुभाचरण व्रत तथा शीलादि पालन तथा पर्व तिथिमें उपवास पूजनादिके द्वारा पुरवासी लोग धर्मका सेवन करते हैं ॥४४॥ पश्चात् उसीके फलसे उन्हें इन्द्रियों से उत्पन्न होनेवाले सुख, भोगोपभोग सम्पत्ति सुन्दर स्त्रियां तथा बालक अपनी इच्छा के अनुसार प्राप्त होते हैं ॥४॥ ___ अहो ! देवता लोग भी शिव-सुखकी संप्राप्ति के लिये जिस उज्जयिनीपूरीमें अपने अवतार होने की इच्छा करते हैं अथवा और कोई ऊंचे पदकी प्राप्तिके लिये भी तो उस पुरीका और क्या उत्तम कीर्तन होगा ? ॥४६॥ इत्यादि. वर्णनसे उपलक्षित उज्जयिनीपुरीमें-प्रतापी, धर्मबुद्धि तथा धर्मात्माओंसे अत्यंत अनुरागका करनेवाला अवनिपाल नाम राजा है ॥४७॥
और सरल हृदय धनपाल नाम एक वैश्य रहता है। तथा शुभ २ लक्षणोंसे विराजित प्रभावती नाम उसकी भार्या है ॥४८॥ उन दोनोंके परस्परमें अत्यन्त प्रेम करनेवाले तथा गुण और सुन्दर २ लक्षणोंसे समान देवदत्त प्रभृति सात पुत्र हये ॥४९।। उनमें कितने बालक तो अक्षराभ्यास करने लगे और बाकीके बड़े पुत्र धन सम्पादनके लिये व्यापार करने लगे ॥५०॥
पश्चात् किसी दिन प्रभावती अन्तिम चतुर्थस्नान करके प्राणनाथके साथ २ शय्यामें सोई हुई थी सो उसने शुभोदया
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