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चतुर्थ अधिकार उसने बलभद्रके कहने को स्वीकार किया । बलभद्रने उसके रहनेके लिये अपने घरही के पास एक छोटीसी झोपड़ी बनवा दी। माता पुत्र वहींपर रह कर उसकी नौकरी करने लगे और बलभद्र के द्वारा दिये हुये वस्त्र भोजनादिसे अपना निर्वाह करने लगे ।
बलभद्रके सात पुत्र थे। उनके प्रातःकाल खानेके लिये सदा खोरका भोजन बना करता था । सो उन्हे खीर खाते हुये देखकर अकृतपुण्य भी अपनी मातासे रोज२ खीर मांगने लगा। __ माताने उत्तर दिया-पुत्र ! तू नहीं जानता कि बिना पुण्यके ऐसा उत्तम खाना नहीं मिल सकता । तूने न तो परभवमें और न यहीं कुछ पुण्य कमाया है, अब तू ही कह, मैं तुझे कहांसे खीरका भोजन दे सकती हूं ? देख ! उत्तम भोजन, उत्तम वस्त्र, धन धान्य और सख ये सब धर्मके बिना कभी नहीं मिलते है ।
इसी तरह उसे उसकी माताने बहुत समझाया तो भी वह कर्तव्याकर्त्तव्यको न जान सका । इसीलिये प्रतिदिन वह खीर मांगा करता था और न मिलने पर रोने लगता था । उसे रोता हुआ देखक र बलभद्र के पापी पुत्र बिचारेको थप्पडोंसे मारा करते थे।
इसी तरह मारते२ एक दिन उसे कहीं अधिक चोट लग गई सो उसका मुंह सूझकर विकृत हो गया । ___अकृतपुण्यकी ऐसी दशा देखकर बलभद्रने उससे पूछाक्यों यह मुख कैसे सुझ गया है ? उसने कहा-प्रभो ! खानेको खीर मांगा करता था परन्तु था तो पापका उदय, सौ वह कैसे मिल सकती थी ? उसके बदलेमें आपके पुत्रोंने मेरी यह दशा की है।
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