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हुए
उन्हें धमला सुन की मजबूत
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श्री धन्यकुमार चत्र होकर घर की ओर जा रहा था सो दूर ही से बलभद्रको अपने सामने आता हुआ देखकर डरके मारे पर्वत पर चढ़ गया ।
बलभद्र उसे देखकर घर लौट आया अकृतपुण्य वही गुहाके बाहिर खड़ा हो गया । __ उसी गुहामें श्रीसुक्त मुनिराज-वंदनाके लिये आये हुए श्रावकोंको ब्रतका स्वरूप, भेद तथा फल सुना रहे थे जिससे उन्हें धर्म लाभ हो सके । सो बाहर बैठा हुआ अकृतपुण्य भी सश्रद्धा सुन रहा था। उसका सार यह है-.
जैसे वृक्षोंका मूल उनकी मजबूतीका कारण होता है उसी तरह सब व्रत और धर्मका मूल उत्तम सम्यग्दर्शन है और वही त्रिभुवन पूज्य हैं। सप्त तत्व, नव पदार्थ देव, गुरु और शास्त्रके शंकादि दोष रहित श्रद्धानको सम्यग्दर्शन कहते हैं । सप्तब्यसन महा पापके कारण और नरकमें ले जानेवाले हैं इसलिये बुद्धिमानोंको पहले इनका परित्याग करना चाहिये । ___ मद्य, मांस, मधु (शहद) और पंच उदम्बर फलके छोड़-. नेको आठ मूल गुण कहते है। ये मूल गुण पालन किये जांय और सातों व्यसन छोड़े जांय यही सब व्रतोंकी मूल दर्शनप्रतिमा हैं।
पांच अणुव्रत, चार शिक्षाव्रत और तन गुणव्रत ये बारह व्रत कहे जाते हैं। उनमें विकल त्रय (दो इन्द्रो, तीन इन्द्री और चतुररिन्द्री) तथा पंचेन्द्रियोंकी मन, वचन, कायसे जो वती पुरुष व्रत लाभके लिये रक्षा करते हैं वह पहला अहिंसाणुव्रत है। यह व्रत सब धर्म तथा व्रतका बीज माना जाता है। देखो! जिन भगवानने जितने व्रत समिति प्रभृतिके
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