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श्रो धन्यकुमार चरित्र जो पापसे डर कर सब प्रकारके गृह, वाणिज्य और कृषि आदि आरम्भका अपने हितके लिए मन, वचन कार्यपूर्वक परित्याग कर देते हैं वह आठवीं आरम्भ त्याग प्रतिमा कही जाती है । इसके द्वारा सब पापाश्रवका निरोध होकर सुख मिलता है।
जो सन्तोष रूप अनुपम खड गके द्वारा मळ राक्षसीका नाम शेष करके त्रिशुद्धि पूर्वक वस्त्रावशेष सब परिग्रहका त्याग कर देते हैं यही नवमी परिग्रह त्याग प्रतिमा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप उत्तम रत्नोंकी खानि है। ___मोक्ष-सुखके चाहनेवाले जो पुरूष-विवाह, खान-पान आदि जितने पापके और जीवोंकी हिंसाके कारण घरके कर्म हैं उनमें मन वचन कायकी शुद्धिपूर्वक सम्मति (सलाह) का परित्याग करते हैं उसे अनुमति-विरति दशवी प्रतिमा कहते हैं। जिनेन्द्रने इसे सब सुखोंको जननी कही है।
जो खण्ड वस्त्रके धारक केवल अपनी शरीर स्थितिके लिये-कृत, कारित और अनुमोदना रहित निर्दोष भिक्षावृत्ति दूसरोंके यहां करने जाते हैं (वह केवल इसी इच्छासे कि तपश्चरण निर्विघ्न संधता जाय) उसे उद्दिष्ट त्याग ग्यारवी प्रतिमा कहते हैं । यह प्रतिमा त्रिभुवन महनीय है। ___ जो श्रावक लोग इन ग्यारहों प्रतिमाओंका संसारसे उदासीन होनेके लिये पालन करते हैं वे वचन अगोचर सोलह स्वर्ग पर्यन्त सुखोपभोग करके अथवा चक्रवर्ती आदिकी लक्ष्मीके स्वामी होकर अन्तमें नियमसे मोक्ष जाते हैं।
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