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पंचम अधिकार
[ ५१ - इसके द्वारा अपना और दूसरोंका हित होता है और यही सब सुखका भी कारण है। इन बारह व्रतोंका निरतिचार यावज्जीवन पालन करना चाहिये । और अन्तिम समयमें मोह परिग्रहादिका परित्याग कर जिन दीक्षा ग्रहण करनी चाहिये ।
जब आयुके अंतका परिज्ञान हो जाय तप उपवासादिके द्वारा दोनों प्रकारको सल्लेखना धारण करनी उचित है । क्योंकि इसीके द्वारा तो सब व्रतादि सार्थक होकर स्वर्ग और मुक्तिसुखके कारण होते हैं। इन्हीं बारह व्रतके पालनेको दूसरी प्रतिमा कहते हैं । तीसरी सामायिक प्रतिमा है और चौथो प्रोषधोपवास प्रतिमा है। अप्रासुक और सजीव वल्कल, बीज, फल, पत्र, जल प्रभृति सहित वस्तुओंका करुणा बद्धिसे जो छोड़ना है उसे पांचवीं सचित्त त्याग प्रतिमा कहते हैं। जिन भगवानने इन्हें सब जोवकी हितकारक बताई है।
खाद्य, स्वाद्य आदि चार प्रकारके आहारका रात्रिमें परित्याग करना जिससे जीव हिंसा न होने पावे और दिनमें ब्रह्मचर्य व्रत रखना (अपनी स्त्रीके साथ भी दिनमें विषय सेवन न करना) यह छठी रात्रि मुक्ति त्याग प्रतिमाका लक्षण हैं । इस प्रतिमाका फल आधे उपवासका होता है।
जो विरक्त महात्मा पुरुष यह समझकर कि स्त्रियां पुरुष के भरे कलशकी तरह अपवित्र हैं, सो उन्हें दूर से हो छोड़कर सर्वथा ब्रह्मचर्य पालन करते हैं यह सातवीं ब्रह्मचर्य प्रतिमा मानी गई है। यह प्रतिमा सब सुखोंको खानि है और परम्परा शिव-सुखको साधन है ।
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