Book Title: Dhanyakumar Charitra
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Udaylal Kasliwal
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 11
________________ - - श्री धन्यकुमार चरित्र सम्यग्दर्शन ग्रहण करते हैं। कितने इन्द्रपदको प्राप्त होते हैं तथा कितने दानके फलसे भोगभूमिमें जाते हैं ॥३४॥ जिस देश में सम्पूर्ण अभ्युदय का हेतुभुत श्री जिनभगवान के द्वारा कहा हुआ धर्म, श्रावक मुनि तथा सुचतुर पुरुषों के द्वारा चलता है ॥३५॥ __ उसी धर्मके द्वारा अवन्ती निवासी भव्य पुरुष निरंतर पद पदमें सुख, उत्तम २ वस्तु तथा संपत्तिको प्राप्त होते हैं ॥३६॥ जिस देशमें धर्मात्मा पुरुष अपने अनुकूल आचार तथा गुणों के द्वारा धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष तकका साधन करते हैं तो उस देशमें और २ सामान्य विषयके साधनको हम कहां तक कहें ||३७।। __ उसी अवन्ती देशके बीचमें नाभिके समान सुविशालविद्वान, धर्मात्मा, उन्नत २ चैत्यालय तथा महोत्सवसे मनोहर उज्जयिनी नाम पुरी है ॥३८॥ वह बड़े २ उन्नत गोपुर, प्राकार, खातिका तथा सुभटोंसे युक्त होनेसे लोकमें अयोध्या के समान शत्रुओंसे अलङ्घनीय मालूम होती है ॥३९॥ जिस नगरीमें श्रावक तथा श्राविकाओंसे पूर्ण जिन प्रतिमाओंसे पूर्ण, जिन प्रतिमाओंसे सुन्दर उचे २ जिन मंदिर वाद्य तथा धनवान लोगोंसे शोभायमान हैं ॥४०।। जिसमें धर्मात्मा पुरुष प्रात:काल ही शय्यासे उठकर निरंतर सामायिक स्तवन तथा ध्यानादिसे उत्तम धर्मका संपादन करते रहते है ॥४१॥ और अपने गृहमें तथा जिनालयमें तीर्थंकर भगवानकी पूजन करके मध्याह्न समयमें पात्र-दानके लिये गृह द्वार पर साधुओंका समवलोकन करते रहते हैं ॥४२॥ तथा दिनभरमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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