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द्वितीय अधिकार स्मरण हो आया । उन पापात्माको इतने पर भो जब संतोष न हुआ तब ऊपरसे और भी निर्दयतापूर्वक उसके किसी प्रकार न जीनेको इच्छासे पत्थर फेंकने लगे। पश्चात् यह समझकर कि अब वह नियमसे अपने जीवनका भाग पूरा कर चुका होगा सो इसी विश्वाससे किसी प्रकार संतोष मानकर घरकी ओर लौट गये ग्रन्थकार कहते हैं कि___"संसार में ऐसा कौन-सा बुरा काम है जिसे पापी लोग न करते हों किंतु नियमसे करते हैं।"
उधर धन्यकुमारके बड़े भारी पुण्योदयसे अथवा यों कहो कि महामंत्रकी शक्तिसे उसी समय जल देवताने आकर धर्मात्मा कुमारको जल निकलनेके द्वारसे धीरे २ बाहर निकाल दिया। यह बात ठीक है कि जिन लोगोंने पहले पूण्य संचय कर रखा है उनके आधीन देवता स्वयं हो जाते हैं, और आये हुये उपद्रवोंका नाश कर उपकार करते हैं। इसी महामंत्रका ध्यान करनेसे जो शुभ कर्मका बन्ध होता है उससे दुष्टोंके द्वारा किये हुये घोर उपद्रव, सब नष्ट हो जाते हैं, जिस प्रकार केसरीके द्वारा बिचारे बड़े २ गजराज क्षणभर में नामशेष हो जाते हैं । देखो ! यह पुण्य हीका माहात्म्य है जो जलीय उपद्रव, स्थलीय उपद्रव, अकाल मृत्यु चोर विभीषिका, राज विभीषिका आदि विघ्नजाल बहुत जल्दी ही शांत हो जाये हैं। इसोसे तो कहते हैं कि जल, स्थल, दुर्ग, अटवी आदि जनित भयावस्थामें तथा मृत्युकाल में भी केवल एक धर्म ही सहाई होता है । इसीलिये बुद्धिमानोंको चाहिये कि आपत्तिके समय में वास्तविक बंधुकी तरह हित करनेवाले तथा मरण प्रभृति अपायके कारणोंसे रक्षा करनेवाले धर्मका निरंतर संपादन करें।
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