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द्वितीय अधिकार
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समस्त परिग्रह रहित निर्ग्रथ गुरूसे बढे सत्पुरूषोंकें सत्कार करने योग्य तथा स्वर्ग मोक्षके मार्गका उपदेश व र नेवाले और गुरु नहीं हैं ||७५ || सर्वज्ञ भगवानके कहे हुये सात तत्वोंसे बढकर सत्य तथा सम्यग्ज्ञानके कारण और तत्व: इस संसार में नहीं हैं ||७६ ||
उत्तम पात्रदान छोड़ कर भोग तथा सुखका देनेवाला और दान नहीं हैं तथा बारह प्रकार तप छोड़कर कर्मोक नाश करनेवाला और तप नहीं है ||७७ ॥
इस प्रकार जिन भगवान के कथनमें जो बुद्धिमान पुरुषोंक निश्चय करना है तथा श्रद्धा और रूचिका रखना हैं, ये सब दर्शन रूप कल्पवृक्ष के बीज है । क्योंकि संसार में मनोमिलपित सुखका देनेवाला, तीन जगतके स्वामीयोंको तथा जिन भगवानकी संपत्तिका कारण यहीं सम्यक्त्व है । ऐसा समझ कर आठ गुण युक्त, चंद्रकी कांति समान शुद्ध तथा पच्चीस दोष रहित सम्यग्दर्शनकी शुद्धि तुम धारण करो ।।७९-८० ।।
तथा कहे हुये देव पूजनादि छह कर्म धर्मकी सम्प्राप्ति के लिये सदैव आचरण करो || १ || जिन पूजन, गुरुओं की सेवा, स्वाध्याय, संयम, तप तथा दान ये गृहस्थों के नित्य करने योग्य छह कर्म पुण्यके कारण हैं ||८२|| भक्तिपूर्वक जिन मन्दिर तथा जिन प्रतिमा निर्माण कराकर अपनी शक्तिके अनुसार उत्तम २ तथा मनोहर आठ प्रकार पूजन द्रव्यसे प्रातः दिन जो जिन प्रतिमाओंकी पूजा की जाती हैं, उसे बुद्धिमान पुरुष संपूर्ण अभ्युदयकी देनेवाली कहते हैं ||४||
यही कारण है कि जिन भगवानको पूजनसे संपूर्ण सम्प
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