________________
२६ ]
श्री धन्यकुमार चरित्र ये बारह व्रत भी गृहस्थ धर्ममें पाले जाते है गृहस्थ धर्म भी पापका नाश करनेवाला और स्वर्ग सुखका प्रधान कारण है। इसलिये कुमार धर्मकी प्राप्तिके लिये तुम्हें श्रावकोंके उत्तम व्रत धारण करने चाहिए तुम इनके द्वारा उत्तम सुख तथा परंपरा मोक्ष भी प्राप्त कर सकोगे। सदैव सद्धर्मका संपादन करो; धर्महीका आश्रय लेओ क्योंकि धर्म गुणोंका खजाना है। धर्मके अनुसार उत्तम मार्गपर चलो, उसे प्रतिदिन अभिवन्दना करो, धर्मसे तुम्हें सब वस्तुओंको अपार सिद्धि होगी। देखो धर्मका मूल दया है उसे कभी मत भूलो, धर्म में सदा निश्चल चित्त रहो यही उत्तम धर्म तुम्हारी सदा रक्षा करेगा।
तुम जानते हो कि धर्म अनन्त सुख का समुद्र है और दुःखका नाश करनेवाला है, बुद्धिमान लोग सदा धर्मका उपार्जन करते हैं, धर्मके द्वारा जल्दी ही सब गुण मिल जाते हैं, धर्मको मैं भो नमस्कार करता हूँ। धर्मको छोड़कर और कोई शिव-सखका देनेवाला नहीं कहा जा सकता धर्मका मूल क्षमा है, धर्म में अपने चित्तको एकाग्र करता हूं, हे धर्म ! तू मेरी रक्षा कर। इति श्री सकलकीति मुनिराज रचित धन्यकुमार चरित्रमें धन्यकुमारके विघ्नोंमें शांति तथा धर्म श्रवण
नाम द्वितीय अधिकार समाप्त हुआ ।।२।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org