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श्री धन्यकुमार चरित्र विचारते ही इसे विभंगा अवधि उत्पन्न हो गई। उसके द्वारा अपनेको भयंकर नरकमें गिरा हुआ समझकर पूर्व जन्मके बुरे कर्मोको विचारने लगा
हां! पांच इन्द्रियोके विषयमें आसक्त होकर मुझ पापीने सात व्यसन सेवन किये थे, अभक्ष्य मधु मांसादि खाये थे, स्वच्छन्द होकर मदिरा पान किया था, चोरी और मायाचारादिके द्वारा दूसरोंका धन लूटा था, दूसरोंकी स्त्रियोंसे बलात्कार किया था, जीवोंकी हिंसा को थी झूठे और कडुवे वचन बोले थे, जिनालयके उपकरणादिका हरण किया था, आर्त, रौद्र, दुर्लेश्या, बुरी चेष्टा और दूसरोंको दुःख देना आदि दुराचारोंसे निरन्तर पाप उपार्जन किया था उसी महापापसे यहां यह दारूण दुःख भोगना पड़ा है।
___ यह दुख कितना दुरन्त और दुःसह हैं जिसका संसारमें कोई उपमान नहीं दोखता। पाप तो मैंने बहुत ही कमाया
और पुण्यके कारण न तो कुछ व्रत नियमादि ही पालन किये न नमस्कार मन्त्रका ध्यान किया, न जिन पूजन की न गुरुओंके चरणोंकी सेवा की, न इन्द्रियें वशमें को, न उत्तमर पात्रोंको दान दिया और न ध्यान ही किया अथवा थोड़े में यों कहो कि शुभ कर्मोके द्वारा धर्मका लेश भी सम्पादन नहीं किया जो उत्तम गतिके सुखका कारण और दुर्गति से रक्षा करनेवाला है।
यही कारण है कि-मुझे दुःख प्रचुर-और महा निंद्य दुःख रूपी समुद्रके बीच में जन्म लेना पड़ा । हा ! मैं पाप शत्रुके द्वारा पूर्णरूपसे जकड़ा हुआ हूँ। मैं कहां जाऊं ? और किससे जाकर अपनी दुःख कहानी सुनाऊं ?
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