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श्री धन्यकुमार चरित्र राजा और महाराजा इन्हींकी स्तुति करते हैं इसलिये ये ही स्तवनके पात्र हैं। इति श्री सकलकोति मुनिराज रचित धन्यकुमार चरित्रमें अकृतपुण्यके भवान्तरका वर्णन नाम तृतीय
अधिकार समाप्त हुआ ॥३।।
चतुर्थ अधिकार
अकृतपुरूषके दानका वर्णन जिनान्धर्माधिपान्वन्दे सिद्धान्धर्मफलाकितान् ।
सूरीश्च पाठकान्साधुन्धर्मान्धर्मप्रवर्तकान् । एक दिन दरिद्री और दीन अकृतपुण्य सुकृतपुण्यके चनेके खेत पर चला गया और नौकरको तरह सुकृतपुण्यसे बोला
सुकृतपुण्य ! देखो, ये और लोग, जो चने उखाड़ रहे हैं मैं भी इनकी तरह यदि चने उखाडू तो क्या मुझे कुछ देओगे ?
उसके कातर वचन सुनकर सुकृतपुण्य विचारने लगा हा! इस संसारमें मनुष्योंके ककी विचित्रता! जो कभी स्वामी होते हैं वे तो नौकर हो जाते हैं और जो नौकर होने हैं वे स्वामी हो जाते हैं। __हाय ! इसके पिताके प्रसादसे मेरी यह दशा हुई जो मैं धनिक और गांवका स्वामी हो गया और यह भी उसीकर
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