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श्री धन्यकुमार चरित्र
चाहिये कि हमसे भी जो ऐश्वर्यादि में बड़े हैं उनके लिये अपनी कन्याका संकल्प करें। उसने कहा- आपने कहा सो ठीक है परन्तु मेरी यह इच्छा नहीं जो मैं उसे दूसरेके लिए देऊ । इसलिये मैंने तो अपने हृदयमें निश्चय कर लिया है। कि जिस किसी समय देऊंगा तो धन्यकुमार ही के लिये देऊंगा |
इसी तरह और भी कितने बड़े २ धनिक लोग कहने लगे कि हम भी अपनी कन्याका परिणय संस्कार धन्यकुमार के साथ हो करेंगे औरोंके साथ नहीं । इस प्रकार दिनों दिन बढ़ते हुये पुण्यशाली धन्यकुमारका अभ्युदय उसके बड़े भाईयोंको सहन नहीं हुआ सो उसके साथ इर्षा करने लगे और साथ ही उसकी जीवन यात्राका नाम शेष करनेके लिये : संकल्प किया ।
उधर विचारे धन्यकुमारको शुभ कामोंकी ओर से बिल्कुल : अवकाश नहीं मिलता था सो उसे यह कैसे मालूम हो सकता था कि मेरे उपर भाईयोंके क्या २ षडयन्त्र रचे जा रहे हैं ।
भावार्थ - भाइयोंके दुष्ट अभिप्रायोंको वह न सका । सो किसी दिन वे पापी लोग कुछ विचार कर उपवनकी वापिकाओं में जल क्रीडाके लिये धन्यकुमार को लिवा ले गये । बिचारा सरल हृदय धन्यकुमारको वापिकाके किनारे पर बैठकर प्रीतिपूर्वक उन लोगोंकी जल लीला देखने लगा । इतने में उसके भाईयोंमें से एक कुटिल परिणामी पापीने पीछे से आकर और गला दबाकर उस विशुद्ध बुद्धिको वापिका में उलट दिया धन्यकुमार पापके उदयसे वापिका के गहरे जल में गिरा तो परंतु गिरते २ भी उसे महा मन्त्रका
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