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पहिला अधिकार
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क्योंकि यही पुण्य, पुण्य तथा गुणोंका आशय है, पापका
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नाश करनेवाला है पुण्यका बुद्धिमान लोग आश्रय करते हैं " पुण्य से समस्त सुख प्राप्त होते हैं, पुण्यकी प्राप्ति के लिये ही पुण्य क्रियायें की जाती हैं, पुण्यसे त्रिभुवनमें होनेवाली • लक्ष्मी प्राप्त होती है, पुण्यके सम्पादन करनेका बीज व्रत का धारण करना है । इसलिये बुद्धिमानों ! सुखकी समुपलब्धिके "लिये निरन्तर पुण्यके उपार्जन करनेमें चित्त लगाओ || १३० ||
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इति श्री सकलकीर्ति मुनिराज रचित धन्यकुमार चरित्र में धन्यकुमारका जन्म तथा उपनिधियोंके लाभका वर्णन नाम पहिला अधिकार समाप्त हुआ ||१||
द्वितीय अधिकार
जो धर्मके आदि प्रवर्तक हैं, जिन्हें त्रिभुवन वत्ति समस्त लोग नमस्कार करते हैं, सारे वसुन्धरा मण्डल में जो उत्तम गिने जाते हैं, सज्जन पुरुषोंके आश्रयाधार तथा अखिल संसारके जीवोंका कल्याण करनेवाले हैं, उन श्री जिनेन्द्रका में स्तवन करता हू ।
एक दिन उज्जयिनीका ही रहनेवाला कोई बुद्धिमान "धन्यकुमारका कांतिशाली सुन्दर रूप देखकर उसके पितासे बोला - धनपाल ! रतिके समान सुन्दर एक बाला है । मेरी इच्छा है कि मैं उसे धन्यकुमार के लिये विवाह दूं, जिससे वह अपनी इच्छानुसार सुखापभोग कर सके। उसके उत्तरमें नपालने कहा- मैं तो इसे अच्छा नहीं समझता । आपके
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