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पहिला अधिकार
[१३. वैश्यका धन्यकुमार नाम पुत्र उत्पन्न होनेवाला है सो वही पूर्वोपार्जित पुण्योदयसे इन निधियोंका भी स्वामी होगा और. उसके द्वारा लोगोंको बहुत सुख सम्पत्ति प्राप्त होगी।"
मुनिराजके वचनोंको सुनकर वसुमित्र अपने घर गया और फिर मुनिराजके कथनानुसार यो व्यवस्था पत्र लिखा
"श्रीमान् महामण्डलेश्वर महाराज अवनिपालके सुराज्य में वैश्यकुलका उत्तम भूषण, धनी, भोगी तथा पुण्यशाली जो धन्यकुमार होनेवाला है वही धन्यात्मा मेरे गृह में इस स्थान से नवनिधियों स्वीकार कर सुखपूर्वक यहीं पर रहे।"
इस प्रकार पत्र लिखकर पत्रको उत्तम २ रत्नोंके साथ साथ खाटके पायोंमें बन्द कर सुखपूर्वक रहने लगा। पश्चात् सेठ तो आयुके अवसान समयमें सल्लेखनापूर्वक प्राणोंको छोड़ कर शुभोदयसे सुख निकेतन स्वर्गमें गया, सेठजीका स्वर्गवास हो जाने बाद-बिचारे शेष घरके लोग भी अशुभ कर्मोदयसे मरकर कित ने नरकमें, कितने अपने अपने कर्मों के अनुसार गतियोंमें गये। इनमें जो सबके पीछे मरा उसे जलाने के लिये खाट सहित स्मशान भूमिमें लिवा ले गये। उन्हीं खाट के पायोंको शुभोदयसे धन्यकुमारने चाण्डालके हाथसे खरोदे ।
ग्रन्थकार कहते हैं कि-अहो! शुभ कर्म ही एक ऐसी वस्तु है जो नहीं प्राप्त होनवाली, अत्यन्त दुर्लभ, बहुत दूरकी तथा बहुत धनके द्वारा मिलनेवाली वस्तुको भी स्वयं मिला देता है।
धन्यकुमार को पत्रके बांचने से बहुत खुशी हुई। वह
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