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पहिला अधिकार
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प्रभावतीने पुत्रोंकी रामकहानी अपने स्वामीसे कह सुनाई और साथ में कहा कि देखो ! धन्यकुमार अब सब तरह सौभाग्य-सम्पन्न हो गया है उसे आप व्यापार में क्यों नहि लगाते ? व्यापारके न करने ही से बड़े भाई उससे द्वेष करते रहते हैं ।
अपनी कांता के वचनानुसार धनपाल भी शुभ मुहूर्त में सुपुत्र धन्यकुमारको किसी तरह बाजारमें ले गया और उसे सौ दीनारे देकर बोला- प्यारे ! यह द्रव्य लेओ। और इसके द्वारा यदि कोई किसी वस्तुको बेचनेके लिये लावे तो तुम उसे खरीद लेना तथा उससे भी किसी और वस्तुको अच्छी देखकर खरीदना सो इसी तरह जबतक भोजनका समय न आ जावै तबतक व्यापार करते रहना फिर अन्तमें जो वस्तु खरीदी हो उसे नौकरके हाथसे उठवाकर भोजन करनेके लिये घर पर आ जाना | इस प्रकार सम-झाकर धनपाल तो घर चला गया, और सरल हृदय तथा सौन्दर्यशाली धन्यकुमार नौकर के साथ २ वहीं पर ठहरा । इतने में कोई पुरुष लकड़ीकी भरी हुई एक उत्तम गाड़ी बेचने के लिये वहीं पर लाया । धन्यकुमारने पिता का दिया हुआ धन उसे देकर उससे वह गाड़ी खरीद ली । और फिर गाड़ीके द्वारा अपनी इच्छानुसार एक मैढा मौल ले लिया । मैढ़े को भी किसी दूसरेको देकर उससे चार खाटके पाये खरीद लिये । बाद अपने घरपर आ गया । उस समय धन्यकुमारकी माता बहुत आनन्दित हुई और कहने लगी कि अहो ! आज पहले ही दिन मेरा पुत्र ब्यापार करके आया है इस लिये उत्सव करना चाहिये ।
उधर वे आठ पुत्र देखकर कहने लगे कि देखो ! यह
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