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श्री धन्यकुमार चरित्र आया और मनोहर गुणों के द्वारा देवकुमार के समान बढ़ने लगा। __उस समय धनपालने-देवशास्त्र, तथा साधुओंकी भक्तिपूर्वक परिचर्या कर विद्या, कला, विज्ञान प्रभृति गुणोंकी समुपलब्धिके लिये धन्यकुमारको उपाध्यायके पास महोत्सव-. पूर्वक पढ़नेको बैठाया। बुद्धिमान धन्यकुमार भी थोड़े ही समयमें उत्तम बुद्धि रूप नौकाके द्वारा शास्त्र नीरधिके पार हो गया। पश्चात् धीरे धीरे युवावस्था में अनेक शास्त्रोंका अनुभवी ज्ञान तथा कला कौशलका जाननेवाला, विचारशील, उत्तम गुणोंका आश्रय, बुद्धिमान, सुयशसे सारे वसुन्धरा वलयमें प्रसिद्ध, शुभ लक्षणादिसे शोभित, सुन्दर शरीरका धारक, रूप लावण्य भषण-वसन और पुष्पमालादिसे विरा. जित होकर ऐसा शोभने लगा जैसा कामदेवश्रो के द्वारा शोभता है।
धन्यकुमार इस अवस्थामें भी प्रसादी न होकर निरंतर धर्म सम्पादनके लिये प्रचुर धन लगाकर देव गुरु सिद्धांत की परिचर्या किया करता था और शुभ भावोंसे अपनी इच्छानुसार दोन अनाथ लोगोंके लिये दयाबुद्धिसे दानादि दिया करता था इसी तरह संपदाका उपभोग पूर्वक कुमार अवस्थाके योग्य सुख जनक भोगोंका अनुभव करते करते बहुत दिन बीते।
निरंतर इसी प्रकार लक्ष्मीके व्यय करनेकी उसकी उदारताको उसके भाई लोग सहन नहीं कर सके। सो किसी दिन दुर्बुद्धियोंने अपनी मातसे कहा देखो! हम सब तो धन कमावै और उसका खानेवाला यह केवल धन्यकुमार, जो कभी. कुछ ब्यापार नहीं करता है !
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