Book Title: Dhanyakumar Charitra
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Udaylal Kasliwal
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 13
________________ = } श्री धन्यकुमार चरित्र से रात्रिके पिछले प्रहर में अपने गृहद्वार में प्रवेश करते हुये उन्नत वृषभ, कल्पतरु तथा कांतिशाली चन्द्रादि शुभ ग्रहों को देखें । उसे स्वप्न देखनेसे बहुत आनन्द हुआ । बाद प्रात:- काल होते ही शय्यासे उठी और सब धार्मिक क्रियायें -करके स्वामी के पास गई । और अपनी मधुर २ वाणीसे पुत्रके अभ्युदय सूचक देखे हुये शुभ स्वप्नोंको निवेदन किये। स्वप्न के सुनने से धनपालको भी बहुत संतोष हुआ । बाद वह कहने लगा- प्रिये ! इन शुभ स्वप्नोंके फलसे तो मालूम होता है कि तुम्हें दानी, ऐश्वर्यका उपभोग करनेवाले, उत्तम वैश्यकुल रूप गगन मण्डलमें गमन करनेवाला सूर्य तथा अपने सुन्दर २ गुण और उज्जवल सुयश के द्वारा त्रिभुवन को धवलित करने वाले महान पुत्र रत्न की समुपलब्धि होगी । प्राणनाथके वचनोंसे प्रभावती को ठीक वैसा ही आनन्द हुआ जैसा खास पुत्रकी सम्प्राप्तिसे होता है । इसके बाद फिर गर्भके शुभ चिह्न प्रगट दिखाई देने लगे और क्रमसे जब नव महीने पूर्ण हुये तब पुण्यकर्मके उदयसे प्रभावतीने उत्तम दिन तथा शुभ मुहूर्त की आदिमें सुख पूर्वक सुन्दर कान्तिके धारक तेजस्वी शुभलक्षणमण्डित शरीरके धारक, सुभग तथा मनोहर रूपसे राजित उत्तम पुत्ररत्न उत्पन्न किया । यह पुत्र वास्तवमें पूण्यशाली था अत: उसकी नाल गाड़ने के लिए जब पृथ्वी खोदी गई तब धनसे भरी हुई बड़ी भारी कढाई निकली तथा इसी तरह जब उसके मज्जन के लिए भी खोदा गया तब भी पृथ्वीके भीतरसे धन का भरा हुआ दूसरा भाजन निकला । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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