Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 14
________________ षडावसिक गहि चाल, टाला मंजन कच लुंचे। एक बार ठाड़े अहार, लघु अंबर मुंच. भूमिसैन दंतवन त्याग, निजभावविरत / ते बंदों मुनिराज, धरै जे पंच महाव्रतः॥१९॥ सर्वगुरुस्तुति, सवैया इकतीसा-(सर्व गुरु एक लघु) : काहूसौं ना बोलें बैना जो बोलें तौ साता दैना, देखें नाहीं नैनासेती रागी दोषी होइकै।। आसा दासी जानें पाखें माया मिथ्या राधा हीयेमाही राखें सूधी दृष्टी जोइकै // इंद्री कोई दौरै नाहीं आपा जानै आपामाहीं, तेई पावैं मोख ठांहीं कमै मैले धोइकै। ऐसे साधू बंदौ प्रानी हीया वाचा काया ठानी.डया जाते कीजै आपा ज्ञानी भमैं बुद्धी खोइकै // 20 // - करखा (सर्व लघु, एक गुरु)। नगन नंगपर रहत, मदन मद नहिं गहताई मैंमत मत नहिं लहत, दहत आसा। कैरनसुख घटत जस, मरन भय हटत तसा सरन बुध छुटत पुनि, मद विनासा M.SS अमल पद लखत जब, समल पद नखत सव्र, परम रस चखत तव, मन निरासा / . नमत मन वचन तन, सकल,भव भय हरन, अज अमर पद करन, शिव निवासा // 2 // पंचपरमेष्टीको नमस्कार, छप्पय / प्रथम नमूं अरहत, जाहि इंद्रादिक ध्यावत / वंदं सिद्ध महंत, जासु सुमिरत सुख पावत // आचारज बंदामि, सकल श्रुत ज्ञान प्रकासत / बंदत हौं उबझाय, जास वंदत अघ नासत // जे साधु सकल नरलोकमें, नमत तास संकट हरन / यह परम मंत्र नित प्रति जपो, विघन उलटि मंगल करन / सबुद्धिकृतजिनस्तुति, करखा / - राग रंगति नहीं दोप संगति नहीं, मोह व्यापै न निजकला जागी घातिया खै गयौ, ज्ञान परगट भयो - ज्ञेयकों जानि परदर्व त्यागी // ----- - सकल औगुण गये, सकल गुणनिधि भये, 6 सकल तन जस सुकुल रीति पागी। - कृपा करि कंतकौं मोख पद दीजिये, कहत है सुबुधि जिनपाय लागी॥ 23 // करखा छंद / - कहत है सुबुद्धि जिननाथ बिनती सुनो,' किंत तौ मूढ़ समुझै न क्यों ही. घोर संसारके हेत जे विषय हैं, तिन्हें भोगत चहै सुक्ख स्यौं ही॥; जाइगो नकें तब विषय फल जानसी, F- तहां पिछतात सिर धुनै यों ही। 1 ज्ञानावरण षांच, दर्शनावरण नव, मोहनीय अहाईस, अंतराय पांच। 1 सुमतिरूपी स्त्रीको / 2 पर्वतपर। 3 कामदेव / 4 यह मेरा है. इस प्रकार ममत्वबुद्धि / 5 इन्द्रियसुख / Rad Scanned with CamScanner

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