Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 92
________________ (162) // तिविना गरव 19 नौ नारायन जानि, मानि नौ हैं बलभद्दर। प्रतिनारायण नवौं, नवों नारद हरि हितकर / नौ नै गुन परजै दरवकी, आव वंध नौ बार नौगनथानकके भेद नों, समकित नौ परकार छायक गुन नौ नमों, सील नौ बारि संभारौ प्रायश्चित नौ भेद, सांत रस नौमैं धारौ // नौ ग्रैवक उर धार, नौ नउत्तरे भरे बुध / जोनि-भेद नौ जान, मान मंगल नौ पद सुध॥. नौ गुनथानक नव कोरिमुनि, नौं गुरु अच्छर अंक नौ दानतनी विध जानके, नौधा भगति विनाग दश बोलके चौवीस भेद / पूजौं दस अवतार, जनम दस गुन जिन साहब / घाति घाति दस सुगुन, दसौं समकित भाखे सब इंद्र आदि दस भेद, भवनवासी दस जानैं / पुग्गल दस परजाय, सूत्र दस भेद बखाने / दस दोषरहित आलोचना, काम कुचेष्टा दस तजै। भुव आदि जीवके भेद दस, वेंयावृत दस विध भजैर दसौं दिसा मन रोकि, प्रान दस भिन्न चेतना। दरवतने दस भेद, संग दस साथ लेत ना // दस विध हैं दिगपाल, निरजरा दस विध जानी। दसौं विसेख सुभाव, अंक दस सिवपदवानी // दस विध कुदान फल नरक दुख, दस सामानिक गुन दरव सुभ समोसरनमें दस धुजा, धरमध्यान दस विध सरव॥ षट् नय। असत कथन उपचार, जीवकौं जन धन जानौ / असत बिना उपचार, काय आतमकौं मानौ // ( 163) सांच कथन उपचार, हंसकों राग विचारी / सांच विना उपचार, ग्यान चेतनकी धारी // निह. असुद्ध नर भेदनै, रागसरूपी आतमा / आदेय सुद्ध निह. समझि, ग्यानरूप परमातमा // 22 // व्यवहार और निश्चय नयसे द्रव्य कर्म, भाव कम, शुद्ध भावका कर्ता कीन है ? . दरव करमकौं करै, जीव व्यौहार बतावै / दरव करम पुद्गलसरूप, निहचै नै गावै॥ भाव करम करतार, धार व्यौहार सु पुद्गल / भाव करम आतमारूप, निहचै नैको वल // दोनों असुद्ध जिय मोहमैं, पुग्गल खंध लगावना। अनुभवी सुद्ध पुद्गल अनू, जीव ग्यानमय भावना 23 शिक्षारूप श्रद्धान / न रचौ विपयनि माहिं, करौ परचौ इनमें नर / खरचौ दरव सुखेत, सदा अरचौ श्रीजिनवर // चरची वारंवार, अतरचौ (2) मन सुखदायक। पुद्गल धर्म अधर्म, व्योम जम जड़ जी ग्यायक // सव अकृत अनादि अजर अमर, गुन परजाय दरवमई। प्रतिभासै केवल आरसी, माहिं मोहि सरधा भई॥२४॥ ... कविकृत लघुता / वृषभसैन गुनसैन, गोतम नरोत्तम गनधर। सकल पाय सिर नाय, पुन्य उपजाय बुद्धि वर // कहे कवित हितकार, सार जहां हीन अधिक अति / छमा वरौ सुख करौ, दोप मति धरौ विपुलमति // यह शब्द ब्रह्म वारिधि लहर, गनत पार को पाय है। द्यानत ग्यानी आतम मगन, यह पुद्गल-परजाय है 25 : इति दश-बोल-पचीसी। Scanned with CamScanner

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