Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 139
________________ घर माहि भापसी यसअग्रवाल नाम (257) धरम विलासमें अनेक ग्यान परकास, सव माहिं भगवान भगवान भगवान तार है // 35 // अग्र नाम तपसी बसेसों अगरोहा भया, तिसकी संतान सब अग्रवाल गाए हैं। ठारै सुत भए तिन ठार गोत नाम दये, .. तहांसों निकसिकै हिसार माहिं छाए हैं। फिर लालपुर आय व्यक 'चौकसी' कहाय, गोलगोती वीरदास आगरेमें आए हैं। * ताहीके सपूत स्यामदासके द्यानतराय, देस पुर गाम सारे साहमी कहाए हैं // 36 // ( 256) दिली माहिं लागू होय पोथी पूरी लिखवाई.. ऐसी साहिबराय सुगुननकी थैली है // 3 // दिलीमैं नहरि आई तैसें यह कविताई, धाम धाम जल ठाम ठाम यह वानी है। केई पूजा पढ़ें केई पद रागसेती रटैं, सुनि सुख बढे बहु धर्मबुद्धि सानी है। बहुत लिखावै बहु सास्त्रको वचावै सदा, . लिख लेय जावै बहु सांच प्रीत ठानी है। दिल्ली माहिं सब ठौर ग्रन्थ यह फैलत है, तैसे सव देस फैलौ सवै सुखदानी है // 33 // आगरौ गुननिको जहानाबाद रहै कोय, सुधरूप धरमविलासकौ प्रकास है। धरमविलास धर्मके कियें सदा विलास, धर्मको विलास यह धरम विलास है // धर्मकों करै है कोय आपहीमैं धर्म होय, : वस्तुको सुभाव सोय कभी नाहिं नास है। निज सुद्ध भावमें मगन रही आठौं जाम, वाहज हू हेत बड़ौ ग्रंथको अभ्यास है // 34 // पूजा बहु परकार दानके कवित्त सार. चरचा अपार पट दवेको विचार है। भगतिको अधिकार पदनिको विसतार, अध्यातमको निहार बानीको विथार है॥ अखर बावनी धार लोकालोक निरधार, . कोप भाव निरवार कथा हू उदार है। छप्पय / पुरनि माहिं आगरौ, आगरौ आन नाहिं तुल / अगर सुवास प्रकास, तास सम अगरवाल कुल // वीरदास महावीरदासतें, नाम धस्खौ जन / नेमिनाथ तन स्याम, दासतें स्यामदास भन // धन द्यानतदार विचारिक, द्यानत नाम प्रवानिया / कवि नगर नाम दादा पिता, निज नामारथ आनिया 37 सवैया इकतीसा / सत्रहसय तेतीस जन्म व्याले पिता मर्न, अठताले व्याह सात सुत सुता तीन जी। च्याले मिले सुगुरु बिहारीदास मानसिंघ, तिनौं जैन मारगका सरधानी कीन जी // पछत्तर माता मेरी सील बुद्धि ठीक करी, सतत्तरि सिखर समेद देह खीन जी। ध. वि. 17 Scanned with CamScanner

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