Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 141
________________ (260) अच्छर मात्रा छंद, अरथ जो अमिल बखाना। जान अजान प्रमाद, दोपतें भेद न जाना। संत लेहु सब सोध, बोधधर हो उपगारी। बालक ऊपर कटक, कौन धारै मतिधारी // इस सबद गगनमें सुकविखग, अपना सा उद्यम गहै पावै न पार सुभ धान वसि, परमानंद दसा लहै // 45 // सवैया इकतीसा / अकवर जहांगीर साहजहां भए बहु, लोकमैं सराहैं हम एक नाहिं पेखा है। अवरंगसाह बहादरसाह मौजदीन, फरकसेरनें जेजिया दुख विसेखा है // द्यानत कहां लग वड़ाई करै साहवकी, जिन पातसाहनको पातसाह लेखा है। जाके राज ईत भीत विना सव लोग सुखी, बड़ा पातसाह महंमदसाह देखा है // 46 // जैनधर्म अधिकार दीसै जगमाहिं सार, और मतके फकीरसेती जती सुखी है। . सव मत माहिं रात दिन पसु जेम खाहिं, स्रावक विवेकी निसत्यागी गुरुमुखी है // : जल अनछानेसों नहारू आध व्याध होय, : पानी पीयें छान कभी होत नाहिं दुखी है। सांच धर्म सब लोक जान जान सुखी होय, सांच वात कही, नाहिं कही आप रुखी है॥४७॥ (261) चैत सब मास माहिं उत्तम वसंतसेती, सर्व सिद्धा त्रोदसी कहें हैं सब लोकर्म / सतभिखा है नछत्र सतको कथन अत्र, सुभ जोग महा सुभ धर्मके संजोगमैं // गुरु पूजनीक गुरुवार कृस्न पच्छ धार, सेत है है तीन वार आगम प्रयोगमैं / सत्रहसै अस्सी सोले भाव रीत चित्त वसी, ग्रंथ पूरा कीना हम सुद्ध उपयोगमै // 18 // एक सुध आतम सधै है सात भंगनते, आठौं गुनमई परभावनसे सुंन है। यही सुभ संवतके सोलै सब आंक भए, सोलै भावसेती बंधै तीर्थकर पुंन है // इसमें अधिकार भी उनासीके सोलै आंक, . सोलहौं कपाय नासकारी महा गुंन है। जातनमें ग्यान जात बातनमें ध्यान वात, धातनमैं बड़ी धात जैसैं हेम हुंन (?) है // 49 // छप्पय। जबलौं मेर अडोल, छोडि भ्रम रुचि उपजाऊ / जबलों सूर प्रताप, पाप संताप मिटाऊ // जबलौं चंद उदोत, जोति सबके घर भासै। जवलौं स्री जिनधर्म, सर्वको सुख परकासै // जबलौं भुव मंगल गगन थिर, तवलौं ग्यान हिये धरौ। इसधर्मविलास अभ्याससौं, सब ही भवसागर तरौ॥५०॥ Scanned with CamScanner

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