Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 137
________________ (252 चौदै गुन सुरकृत्य, बार दस चौदस धरमी // गुन आठ प्रातहारजांनेके, आठ अष्टमी कीजिये। द्यानत त्रेसठ उपवास कर, तीर्थकर पद लीजिये 20 विश्वाराघातभावलाग, सवैया इकतीसा / भूमि कहै मोपै गिरि सागरको बोझ नाहिं, कोलसेती टलै दुष्ट ताकी महा भार है। दसरथ बोल सार रामकों दियौ निकार, राजनीति लंघी वात लंधी न करार है / / नख सिख अंगनिमैं एकै मुख गुनकार, सांच वचन प्रभुजीकै भयौ ओंकार है। ऊंट वाड़ गाड़ी पाड़ चलता ही भला कहै, ऐसे वे सरमके जीवनकों धिकार है // 21 // धैर्य भाव / अंजनी सुसर सास मात तात. निकास, सीता सती गर्भवती रामजीनें छारी है। प्रदुमन सिला तलें धस्यौ पाप ताप भखौ. रामचंद वनवास महा त्रासकारी है / पंडवा निकलि गए कैसे कैसे कष्ट भए, सिरीपाल कोटी भट सह्यौ खेद भारी है। द्यानत बड़ौंका दुःख छोटनिकौं सीख कहै, दुखमाहिं सुख लहै सोई ग्यानधारी है // 22 // (253) वैयावृत अरहंतभक्ति आचारजभक्ति, बहुश्रुतभक्ति प्रवचनभक्ति साधनी // पट आवस्यक काल मारगप्रभाव चाल, वातसल्ल प्रतिपाल सोलही अराधजी। तीर्थकर कारन हैं कर्मके निवारन हैं, मोखसुख धारन हैं टारन उपाधजी // 23 // उनसठि लाख सहस सत्ताईस चालीस, कोडाकोड़ि वर्ष आदिनाथजीकी आव है। तीन कोडाकोड़ि ग्यारै लाख चौ सहस कोड़, एते वर्ष ब्रह्मा आव लोकमैं कहाव है। उन्नीस लाख पचपनसै पचपन ब्रह्मा, आदिनाथ आवमें हुए मुए फलाव है। एक कोडाकोड़ि बहन लख असी हजार, कोड़ि वर्ष वाकी रहे जानौ धर्म न्याव है // 24 // सबैया तेईसा। इंद्र अनेक विवेककी टेक, तुही प्रभु एककौं सीस नबावें / मौलि महा मनि नैन दिखें धन,लाल सुपेद नखौं महि आवे॥ पाटल वन रमाघर चन, सरोज उभै गुन प्रीति बढ़ावें। भौरज नाहिं धरै जड़भाव हरें, सुमरै सुख क्यौं नहिं पावें 25 वुद्धि कहै बहुकाल गए दुख, भूर भए कबहूं न जगा है। मेरौ कह्यौ नहिं मानत रंचक,मोसौं विगार कुनार सगा है। देहुरी सीख दया तुम जा विध, मोहको तोरि दै जेम तगा है। गावहुंगी तुमरौ जस मैं, चलरी जिसपैनिज पेम पगा है 26 दर्सनविसुद्धि विनै सदा सील ग्यान भने, संवेग सुदान तप साधकी समाधजी। Scanned with CamScanner

Loading...

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143