Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 133
________________ (244) चारौं दर्व माहिं ती विभाव गुन जमा नाहिं, सुध भाव गुन भेद साधं बुधवान है। आतमके साधनको साधन बताए सब, वस्त सिद्ध भए साध हेत दुखदान है // 11 // चार अंक भाग दोय गुण करें सोलै होय, नव भाग तीन गुन एक असी धन(?) हैं। सोलहको भाग चार गुनते दोसै छप्पन, पच्चिसका भाग पांच सवा छसै गुन हैं। छत्तिसका भाग पट गुन वार से छानवै, सौ भाग दस गुन दस हजार सुन हैं। संख्यात असंख्यात अनंत यौही भाग गुण, पट वृद्धि षट हानि जानत निपुन हैं // 12 // वारै अंक दोय भाग पट तीन भाग चार, चार भाग तीन पट भाग दोय जाने हैं। वारै दुगुने चौवीस तिगुने छत्तीस दीस, चौगुने अठतालीस पांच साठ ठान हैं। इसी भांति उतकिस्ट मध्यम जघन्य भेद, भागाकार गुनाकार भावनमैं माने हैं। आलसकौं टारि नैंक अंतर विचार देखौ. परनाम भेद जान मिथ्याभाव भाने हैं // 13 // अनंत-भाग-वृद्धि औ असंख्यात-भाग-वृद्धि, संख-भाग-वृद्धि संख-गुन-वृद्धि थानजी / असंख्यात-गुन-वृद्धि औ अनंत-गुन-वृद्धि, अनंत-भाग-हानि असंख-भाग-हानजी॥ (245) संख-भाग-हानि संख गुनहानि असंख्यात, गुन-हानि औ अनंत गुन-हानि मानजी / एई परनामनके बारे भेद थूल कहे, एक एक भेदमें अनेक भेद जानजी // 14 // काहसमै संख-भाग भावनिकी वृद्धि होय, काहू समै संख-गुन भाववृद्धि रिद्ध है। काहू समै असंख्यात-भाग भाववृद्धि होय, काह समै असंख्यात-गुन-वृद्धि निद्ध है // काहू समैमें अनंत-भाग भाववृद्धि होय, काहू सममें अनंत-गुन-भाव वृद्ध है। इसी भांति छहाँ भेद हानिकों लगाय लीजै, धन्न ग्यान केवलमें सव वात सिद्ध है // 15 // जहां लौं गिनै सो संख्यात अगिन असंख्यात, जाको अंत नाहिं सो अनंत ठहराया है। संख भेद संखके असंखके असंख भेद, जाहीके अनंत भेद सो अनंत भाखा है // जातें भेद घाट होय भाग नाम कह्यौ सोय, जातें भेद बाढ़ होय सोई गुन गाया है। संख्यात असंख्यात अनंत भाग गुन पट, वृद्धि हानि बारै भाव सूधा समझाया है // 16 // ग्यान गेय माहिं नाहिं गेय हून ग्यान माहिं, ग्यान गेय आन आन ज्यों मुकुर घट है। ग्यान रहै ग्यानी माहिं ग्यान बिना ग्यानी नाहिं, दुहूं एकमेक ऐसे जैसे सेतपट है। Scanned with CamScanner

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