Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 110
________________ (198) कमलवासिनी देवी, सब सेवा करें। पंद्रह मास रतन, बरसासौं घर भरै॥ आसन काप्यो इंद्र, जनम जिनको भयो। ऐरावति चढ़ि आए, सव सुर सुख लयौ // 6 // गजपै कोड़ सताइस, अपछर नाचहीं। देवी देव चहूं विध, मंगल राचहीं // इंद्रानी प्रभु लाय, इंद्र करमैं दियौ। गज चढ़ि छत्र चमर बहु, मेर गमन कियौ // 7 पांडुक सिल सिंघासनपै, प्रभु थापियो। सहस अठोतर कलस, धार जै जै कियौ / पूजा अष्ट प्रकार, करी अति प्रीतिसौं। नेमिनाथ यह नाम, दियौ गुन रीतिसौं // 8 // मात पिताकौं सौंप, निरत बहु विध भया। देवकुमारन थाप, आप थानक गया // .... खान पान पट भूषन, देवपुनीत हैं। भए कुमर दस गुन, तिहुँ ग्यान सुरीत हैं // 9 // सारथ-वाह रतन ले, चक्रीपै गयौ। जरासिंधु मन कोप, कृस्न ऊपर भयो / हरि पूछै तब आय, जीत प्रभु कौनकी। वदन खुसी लखि, जान्यौ हम जै हौनकी // 10 // (199) भूप कुमर सव साथ, इक दिन कृस्न सभा गये। उठे सवै नरनाथ, सिंघासन बैटे प्रभू // 12 // बात चली बलरूप, एक कहैं पांडा बड़े। एक कहैं हरि भूप, कंस जरासंध जिन हते // 13 // वलभद्दर तिह ठाम, कहैं त्रिजग तिहं कालमैं / मति लो झूठा नाम, नेमिनाथ सम चल नहीं // 14 // कृस्न कहै तिह बार, स्ववल दिखाऊं स्वामिजी / सुनि आई सव नारि, लखें झरोखेमें खरीं // 15 // नेमि सहज कर वाम, दई कनिष्ठा अंगुली। मेर अचल ज्यौं स्वाम, कृस्न हलाय सक्यौ नहीं // 16 // नारायन सत भाय, कहै जोर अपनो करौ। ताही अंगुली लाय, कृस्न उठाय फिराइयौ // 17 // छोड़ि दियौ ततकाल, दीनदयाल दयाल है। वोल्यौ कृस्न खुष्याल, राज हमारौ अटल है / / 18 // नाम भजें जैकार, देव पहुप-वरपा करें। गुन थुति करि वहु बार, बिदा किये प्रभु मान दे॥१९॥ हरिकों फिकर अपार, राज सुथिर मेरौ कहां। जब लौं नेमिकुमार, मन सोचै देखौ हली // 20 // मोतीदाम / बल तब हरिकों समझावै, इन तिहुँ-जग-राज न भाव / कछु कारन देखि धरेंगे, दिच्छा सिवनारि बरेंगे // 21 // तब रितु वसंत सुभ आई,सव भागि चले मिलि भाई। नेमीस्वर हरि बल सारे, परिजन तिय संग सिधारे // 22 // सोरठा। जरासिंधुकौं जीत, सुर नर खग सव वसि करे। सोल सहस तिय प्रीत, तीन खंड राजा भये // 11 // Scanned with CamScanner

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