Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay
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________________ (14) एक सेर नाज काज अपनो सरूप त्याज, डोलत हैं लाज काज धर्म काज हानिके // 38 // कई सीसको कटावें केई सीस वोझ लावें. केई भूपद्वार जावें चाकरी निदानकै। केई हरी तोरत हैं पाहनको फोरत हैं, केई अंग जोरत हैं हुनर विनोनकै। केई जीव घात करें केई छंदकों उचरै, .. नानाविधि पेट भरें इन्हें आदि ठानकै।। एक सेर नाज काज अपनो सरूप त्याज, डोलत हैं लाज काज धर्म काज हानकै // 39 // ____ गृहदुःखचतुष्क / रुजगार वन नाहिं धन तौ न घरमाहि,जि खानेकी फिकर बहु नारि चाहै गहना / ... देनेवाले फिरि जाहिं मिलै तौ उधार नाहिं, साझी मिलें चोर धन आवै नाहिं लहना / / कोऊ पूत ज्वारी भयौ घरमाहिं सुत थयौ, एक पूत मरि गयौ ताकी दुःख सहना।: पुत्री वर जोग भई व्याही सुता जम लई, एते दुःख सुख जानै तिसै कहा कहना // 40 // देहमाहिं रोग आयौ चाहिजै जिया भरायौ, फटि गये अंवर चरणदार नारी मन जार भायौ तासौं चित्त अति लायौ, __यह तौ निवल वह देत दुःख अतिही // 1 नौकरीकी इच्छा करके / 2 विज्ञान / गृहमाहिं चोर पर आगी लग सब जर, ... राजा लेहि लूट वांध मारै सीस पनही। इष्टको वियोग औ अनिष्टको संजोग होइ, एते दुःख सुख मानै सो तौ मूढ़मति ही // 41 // जेठमास धूप परै प्यास लगै देह जरै, कहीं सुनी शादी गमी तहां जायौ चहिये / वामें चुचात भौन लकरी निवरि गई, ..ताकों चलौ लैन पाँच डिगौ दुःख लहिये / शीतके सहायमाहिं अंबर नवीन नाहिं, भूख लगै प्रात मिलै नाहिं कष्ट सहिये। जे जे दुःख गृहमाहिं कहांलौं वखाने जाहि, तिन्हें सुख जाने सो तौ महामूढ कहिये // 42 // तिनको पुरानो घर कौड़ी सौ न धान जामैं, मूसे विल्ली सांप बीछू न्योले जु रहत हैं। भाजन तो मृत्तिकाके फूटे खाली धान नाहिं, टूटी जो खरैरी खाट मल्लिका लहत हैं। कुटिल कुरूप नारी कानी काली कलहारी कर्कश वचन बोलै औगुन महत है। , हाहा मोहकर्मकी विटंवना कही न जाइ, एसा गृह पाय मूढ़ त्यागी ना चहत है॥४३ / / ... . .....उपदेश... .. जिंदगी सहलपै नाहक धरम खोवै,... 25. जाहिर जहान दीखै ख्वावका तमासा है। 1 फूसका / 2 चुभनेवाली / 3 सटमल / 4 थोड़ीसी / 5 खप्न।... करणादामी नही। 37. Scanned with CamScanner

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