Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay
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________________ मंगल अमर। ( 150) पारवानीपीसी। / रिभयेष रिपयेय, धीर गंभीर धीर धुनि / चार पीस जगदीस, ईस तेईस पुगुन गुनि // सुरग-ठाम निज नाग, गात पुर तात घरन तन / आप काय सुभ चिश, गुफत शासन दस घरमान जस गाय पुन्य उपजाय सुधि, पाय फरी मंगल सिर नाय नमो गुग जोर कर, भो जिनिंद भय-ताप. पएपनि / रिपभदेव रिपिनाथ, वृषभ लच्छन तन सोह। नाभिराय-फुरल-कमल, मात मरदेवी मोहे // चौरासी लख पुव्य आय, सत पंच धनुप तन / नगर अजोध्या जनम, फनफ घपु घरन हरन मन // सर्वार्थसिद्धः गमन पद,-मासन केयल ग्यान वर / सिर नाय नमी जुग जोरि करि, भो जिनिंद भव-ताप-हर॥२॥ अजितनाथ / सिंदभव-ताप-ह॥२॥ - -- - प्रेमनाथ। संभय संमय-हरन, पुरी गायत्ती जानी। मात सुपना रूप, भूप दिदराज प्रवानी / / खरगामन मुग्य स्यादि, आदि ग्रीवकत आए / चिन तुरंग उतंग, रंग कंचनम गाए / थितिमाठि लाख पूरब मुगति, धनुष चारिस दखि चतुरा सिर, नाय नमीं // 4 // अभिनन्दन / अभिनंदन अभिनंद,-कंद मुख भूप स्वयंवर / माता सिद्धारथा, कथा सुवरन तन मनहर / / तीन सतक पंचास, धनप तन नगरि विनीता। पुव्य लाख पंचास, तास कपि लांछन मीता / / खरगासन विजय विमानत, करम नास परकास कर। सिर नाय नमी० // 5 // ___ मुमतिनाथ / सुमति मुमतिदातार, सार वस वैजयंत मन / भूप मेघरथ तात, मात मंगला कनक तन // पुव्य लाख चालीस, ईस तन धनुप तीनसै / चक्रवाक लखि चिन्न, खरग आसन सुख विलस // छहमास अगाऊ गरभते, भयौ विनीता सुर-नगर / सिर नाय नमी०॥६॥ पद्मप्रभ / पदम पदम भवि भमर, पदम लांछन सुखदाई। धरन भूप गुनकूप, सरूप सुसीमा माई॥ 1 श्रावस्ती नगरी। अजित अजित रिपु अजित, हेम तन गज लच्छन भन / पिता राय जितसत्रु, अत्र (1) खरगासन आसन // लाख बहत्तरि पुव्व, आव पुर जनम अयोध्या / धनुष चारिसै साठि, गाढ़ बच बहु प्रतिवोध्या // तजि विजय थान परधान पद, बसे विजैसैना उदर। सिर नाय नर्मो०॥३॥ / Scanned with CamScanner

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