Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 85
________________ (158) धनाना। धर्म नात करै ताकौं धर्म भी विनास करै, धर्म रच्चा करै ताकी धर्म रच्छा करै है। दलो करें दुख जाय सुखी करें सुख पाय, नकै दुःखतें निकाल मोख माहिं धरै है। धर्म करें जय होय पाप करें छय होय, भासत हैं सब लोय ताहि क्यों विसरै है। आगिमैं जलत नाहिं पानीमें गलत नाहि, जगर्ने बैवंत सदा धर्म धरै तरै है // 25 // चाहत धन संतान नई देह मिलै आन, डरै कालसेती सदा तनहीमैं रहै है / वांडा अरु भय दोऊ भाव भयौ दीसत है, नाना भांति सुख देखि साता नहिं लहै है // पाप देखि रोवै पाप खोवे नाहिं महामुद्ध, स्वान-वान डारि कोऊ सिंह-वान गहै है। द्यानत यौहारकी पचीसी पढ़ौ संत सदा, ग्यान बुद्धि थिर होय आन नाहिं वहे है // 26 // इति व्यवहारपचीसी। (149) आरतीदशफ। इह विध मंगल, आरती कीजै। पँच परम पद भजि, सुख लीजै // इह० // टेक // प्रथम आरती, श्रीजिनराजा। भव-जल-पार उतार जिहाजा / इह० // 1 // दूजी आरति, सिद्धन केरी। सुमिरन करत मिटै भवफेरी // इह० // 2 // तीजी आरति सूरि मुनिंदा। जनम मरन दुख दूरि करिंदा // इह० // 3 // चौथी आरति श्रीउबझाया। दर्सन देखत पाप पलाया // इह० // 4 // पंचमि आरति साध तुमारी / कुमतिविनासन सिव अधिकारी // इह० // 5 // छट्ठी ग्यारह प्रतिमाधारी। सावक बंदों आनंदकारी // इह० // 6 // सातमी आरती श्रीजिनवानी। द्यानत सुरग मुकतिकी दानी // इह०॥७॥ जिनराजकी आरती। आरती श्रीजिनराज तुमारी / करम दलन संतन-हितकारी / टेक // सर नर असुर करत तुम सेवा / तुम हि देव देवनिकै देवा // आरती०॥१॥ SHETRY आदत। Scanned with CamScanner

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