Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 45
________________ द्रव्यादि चौबोल-पचीसी / . दरख खेत अन काल, मात्र दरव पट तत्व नव। न्यायक दीनदयाल, मो अरहंत नमी सदा // 1 ट्रब्यय मिनटी / सर्वत्रा इटीमा / जघन एक धर्मद्रव्य, कालानू असंख्यात, तात अनंते अमञ्च, मन्च दव्य गहे हैं। नाहीत अनंत सिद्ध, बंदी मन वच काय, सिद्धत अनंते जीव, निगोदमें लहे हैं / यात अनंत निगोद, पांचौइंद्रीआनवते, अनंते सो परमान, उतकिटे कहे हैं। यही द्रव्य मंद है, जघन्य मध्य उतकिष्ट, सरधा करत, मरघानी मरदहे हैं // 2 // क्षेत्र गिनी। जघन एक आकामको प्रदेस अनूसम, सर्व दर्वदेमनिकी थानदान देत है। आठ परदेस मेहतलें जीव छुवै नाहिं, जपनं निगोद देह असंख्यात खेत है / / अंगुल जी हाथ धनुष कोम जोजनभेद, मनी औ प्रतर लोक दर्वको निकेत है। .. नुगंतिनिगोदमें। नियनिगोदनें। व्यपयांतकनिगोदियात्री उपन्याबगाना। 4 वैयणी। लोकत अनंत है अलोकखेत उतकिष्ट, व्योमसी अमल मेरी आतमा सचेत है // 3 // बाल गिनती। जघन काल एक ही समका है वर्तमान, तीन समै अनाहार आवटी उसास है। घरी दिन मास वर्ष पूरवांग आदि भेद, इकतीस ताके अंक डेडसी विलास है // पल्ल सागर छभेद नाना भांति और एक ताहीतं अनंतता अतीत सम राम है। याहीत अनंत गुनै समै हैं अनागतके, काल उतकिष्ट सब ग्यानम प्रकास है // 4 // नावी गिनती। भावको जघन्य कह्या सूच्छम निगोदियाको, एक सम एक अंस खुल्या निरावन है। तीनस चौतीस स्वास छह हजार वारे वार, जनम मरन कर अंत वेर मर्न है॥ भयौ है कलेस घोर खुली है तनक कोर, दूजे समै बढ़े ग्यान विधिको आचर्न है। मरने बाद जीव जबतक आहारवर्गणाको ग्रहण नहीं करता है, उस समयतक उसे अनाहारक कहते हैं। व्यवहारपल्य उद्धारपल्य अद्धापल्य इसीतरह व्यवहार सागर उदारसागर अदासागर। आनेवाला काल। 4 सूक्ष्मनिगोद लब्ध्यपप्तिक जीवके उत्पन्न होने के प्रथम समय में सबसे छोटा हमेशा प्रकाशमान और जिसका कोई कम ढकनेवाला नहीं है ऐसा ज्ञान होता है, उसको निरावरण कहते हैं। ज्ञानावरणादि कमाका / Scanned with CamScanner

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