Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay
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________________ सरधा चालीसी। . (86) मांस ह भखत? कभी दारूकी खुमारीमाहिं सुरापान करो? कभी वेश्या-घर गएते॥ वेश्या हू गमन ? परनारी जोपै मिलै नाहिं परनारी भोगो? कभी दाम चोर लएतें। चोरी हू करत ? कभी जूवे माहिं हार होय सबै गुन भरे नष्ट भाव परनएतें // 14 // एक एक व्यसनके धारक पुरुष / छपय / पंडपूत दुख द्यूत, भूप यक मांस दुखी भुव / जादौं मदजल छार, चारदत वेस्यावस हुव // ब्रामदत्त कु सिकार धार, सिवभूत चोर विध। रावन तिय अविवेक, एक इक विसन गई रिध // ए सात विसन दुखमूल जग, सात नरक करतार हैं। . करि सात तत्त्व सरधान दस,लच्छन पार उतार है॥१५॥ सात विसन इक थूल, भूल परनामनिकेरी। जब जब चले कुराह, वाहि तब फेरि सवेरी // जथासकति व्रत धरी, करौं नरभी सफला इम। धन जोबनको चाव, आव चंचल चपला जिम // यह विसनत्याग श्रावक कथा, निज परहित द्यानत कही। सुनि विसन राग दुखखानि है, मानहिंगे सज्जन सही॥१६ दोहा। वंदी हो परमातमा, जगग्यायक जगभिन्न / दरपन सब परगट करै, होय न सवसौं चिन्न // 1 // नासिक निन्दा। पट मत मान ईसकों, जाप ध्यान तप दान / महा निंदमत नासतिक, सदा पापकी खान // 2 // नास्तिकके चार प्रश्न / कह जीव नाहीं कहीं, पुन्य पाप नहिं दोय / मुरग नरक दोनों नहीं, करि फल लहै न कोय // 3 // चौपाई। नास्तिकप्रश्न-लोहमई इक मंदिर करौ, छिद्र बिना ताम नर धरौ / ताकों काढ़ो जव मरि जाय, किहि मग जीव गयौ समझाय // 4 // उत्तर-तामंदिरमै राखौ ढोल,ताहि वजावौ करो किलोल। बाहर सुनिये छेक न होय, तैसें जीव दरव है लोय॥५ प्रश्न-फिरि बोल्यो-इक प्रानी लेय, ताकी तीली ठीक करेय। मूए पीछे तोली सोय, घट नहीं जी कैसे होय // 6 // उ०-मसक एकमैं भरिए वाय,मुखकौं वाँधि तौल मन लाया पान काढ़ि फिरि तौलि सुजान,घटै नहीं त्यौं चेतनमान 1-2 हवा / इति व्यसनलाम पोडश / Scanned with CamScanner

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