Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 63
________________ संत (105) (104) फरसते न्यारे रस न्यारे रूप गंध न्यारे, सवदतै न्यारे पै सब जाननहारे हैं। जैसा कोई भाव धरै तैसा सोई फल वर. आरसी सुभाव रागदोपसेती न्यारे हैं। पास कछु राखें नाहिं दाता मनवांछितके. ऐसे देव जानें जिन पातिग विदारे हैं // 6 // सब सुख लायक सरव गेय ग्यायक, सकल लोकनायक हौ घायक करनके। मैन फैन नासत हो नैन ऐन भासत हो, वैन हु प्रकासत हो पापके हरनके // कर्म भर्म चूरत हौ पर्म धर्म पूरत हो, हुनर वतावत हो भौ-जल तरनके / द्यानतके ठाकुर हौ दासपै कृपा कर हो, हर ही हमारे दुख जनम मरनकें // 7 // देखौ जिनराज जिन राजकौ गुमान देखौ, मान देखौ देव मान मान पाईयत है। जपके कियतै जप तपको निधान होत, ध्यानके कियेत आन ध्यान ध्याईयत है // नामके लियतें पर नामकी न रहै चाह, चाहके कियैः चाह दाह घाईयत है। अई अरहंत अरिहंत भगवंत संत, ब्रह्मा विष्णु सिव जिन वीतराग बुद्ध हो / दाता देव देवदेव परब्रह्म सुरसेव, .. मुनीस रिसीस ईस जगदीस सुद्ध हो / अनादि अनंत सार सरवग्य निराकार, जित-मार निराधार साहब विसुद्ध हो / भगवान गुनखान जती व्रती धनी नाथ, राजा महाराजा आप द्यानत सुवुद्ध ही // 9 // ग्रंथ हैं अपार सव केतक पढ़ेगा कव, . जामें ना परंगी सुधि तामै पचि मरि है। दान जोग लच्छ लच्छ कोरि जोरि पापनितें, तिनहीकी थापनितें दुर्गतिमें परि है // संजम अराध तीनों जोग साध पुन्य महा, चित्तके चलायें घट दुःकृतसौं भरि है / द्यानत जो पूछ मोहि प्रानी सावधान होय, वीतराग नाव तोहि वीतराग करि है // 10 // आवके वरस घनै ताके दिन केई गनै, दिनमें अनेक स्वास स्वासमाहिं आवली / ताके वहु समै धार तामें दोष हैं अपार, जीव भावके विकार जे जे वात वावली // ताको दंड अब कहा लैन जोग सक्ति महा, हों तो बलहीन जरा आवति उतावली / द्यानत प्रनाम करै चित्तमाहिं प्रीत धरै, नासियै दया प्रकास दासकी भवावली // 11 // इति भक्तिदशक / ऐसे जिन साहबके द्यानत मुसाहव, भए हैं पद पूज दूज चंद गाईयत है // 8 // 1 पातक पाप / 2 इन्द्रिय विषय / Scanned with CamScanner

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