Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 56
________________ A YOJAANEuwarearma (90) चौपाई। जो तरु बोवै सो फल होय, नरत नर पसुतें पसुह कर सुपावै बोवै लुनै, परगट वात लोग सब सुनै // दोहा। जीव धरम परलोक फल, चारौं हैं निरधार। ताते सरवग सेइयै, वांछितफलदातार // 27 // चौपाई। मिथ्यातीकी शंका-सरवग कहा कहां है सोय, .. देखो सुनो न हमनें कोय। ऐसे मिथ्या वचन सुनेय, जैनी हित लखि उत्तर देय 20 समाधान-इस पिरथी इस कालमँझार, न कहौ तौ तुम वच सत सार / और लोक अरु कालमॅझार, है सरवग सब जाननहार 20 शंका-तीन लोक तिहुं कालनि माहिं, हम जानैं हैं सरवग नाहिं।। समाधान-तुम जाने तिहुँ जग तिहुं काल, तुम ही सरवग दीनदयाल // 30 // दोहा। . जब यह वचन प्रगट सुन्यौ, जान्यौ जिनमत सार। छोड़ि नासतिक निपुन नर, कर जोरे सिर धार // 31 // अथ पंच मतवालोंके वचन। दोहा। उत्तर-कहै लाख नौंका वरू(?), सवको एक दुवार / बहुत भेद मतकल्पना, एक जैन सिवकार // 33 // चौपाई। अंधे पांच खरे इक ठौर, आगें गज इक आयौ दौर / एक एक अंग सब. गहा, सो सरधान जीवमैं लहा // 34 // सुंडि पकरि गज मूसल होय, छाज कानतें मानें कोय / माना थंभ पकरि पग अंग, पेट पकरि चौंतरा अभंग // 35 पूँछ पकरि लाठी सरदहा, पाँचौं– गजभेद न लहा। झगरै लरै करै बहु रार, समझाए सब देखेनहार // 36 // ____ उपदेश वर्णन। सरवग देव सुगुरु निरग्रंथ, दया धरम तीनों सिवपंथ / पहली यह सरधा थिर करौ,पीसकति देखि व्रत धरौ 37 दोहा। अंतरतत्त्व सु आप लखि, बाहर दया निहार / दोनौं धरि करि हूजिये, सिव-वनिता-भरतार // 38 // निकटभव्य जे पुरुष हैं, तिनकौं यह उपदेस / दीरघ-संसारी सुनें, धारै अधिक कलेस // 39 // द्यानत जिनमत न्याय लखि, किए छंद चालीस / . पढ़ें सुनें तिनके हियँ, सरधा विस्वावीस // 40 // . इति सरधाचालीसी। - चौपाई। कोई कहै छहौं मतमाहिं, निज निज क्रिया करें सिव जाहिं। जैसैं एक महल षट द्वार, छहौं राह पहुचें नर नारि // 32 // 1 सूप / 2 देखनेवाले सूझतेने। Scanned with CamScanner

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