Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay
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________________ (80) सब भेद जानौ जड़ मिलेकौं जुदा ही मानौ, आप आप-विषै देखै तातें दुःख दहिए // 23 // तीत अनागत भेस। नसा दरव प्रछन्न काल कालानू, खेत प्रछन्न अलोक प्रदेस भाव ग्यान केवल मिथ्याती, काल अतीत अनागत दरव खेत अरु काल भाव सब, देखौ जानौ तुमहि जित हाथ जोरि बंदना करत हौं, हर मेरौ संसार कलेस कवित वनाए सवनि सुनाए, मन आए गाए गुन ग्या चरचा कूप. अनूपम वानी, हंस भूप चिद्रूप-निसान। गोमटसार धार द्यानतनैं, कारन जीव-तत्त्वसरधान / अच्छर अरथ अमिल जो देखौ, लेखौ सुद्ध छिमा उर आन॥ - इति द्रव्य चौबोल पच्चीसी। (81) व्यसनत्याग पोड़श। सवैया तेईसा (मत्तगयन्द)। पापको ताप कलेस असेस, __निसेस यथा छिनमाहिं हरे हैं। देव नमैं गन-मौलि दिपैं, मनि नील मनौं अलि सेव करें हैं। नाम ही सांत करै जिनकौ, तिनको जस इंद्र कहा उचरें हैं / सांतिप्रभू जिन-रायके पायपयोज भजै भवतें निकरें हैं // 1 // ग्यारह प्रतिमा / सवैया इकतीसा / दंसनविसुद्ध बरै वारै व्रतसौं न टरै, ___सामायिक करै धरै पोसह विधानकै। सरब सचित्त टारि छांरिकै निसा अहार, सदा ब्रह्मचार धार निरारंभ ठानकै // . परिगह त्याग देत पापसीखसौं न हेत, याके काज किया लेत ना भोजन दानकै। 2002 एक हू न प्रतिमा है एक विस्नवानकै // 2 // कवित्त (31 मात्रा)। ग्यारै प्रतिमा भिन्न भिन्न सब, कहीं सातमैं अंगमँझार ताके सरब भेद लखि कीनें, आचारजों श्रावकाचार // 1. चन्द्रमाके समान / 2 भौंरा / 3 पाद-पयोज-चरणकमल / 4 प्रोधप्रतिमा। ध. वि. 6 Scanned with CamScanner

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