Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 33
________________ (44) लीन विष डंक अहि भरिया, भ्रममोहत मोहित परिया। विधिना जव दइ है घुमरिया, तब नरकभूमि तू परिया॥११॥ ए नर करि धर्म अगाऊ, जब लो धनजोबन चाऊ / जब लौं नहिं रोग सतावै, तुहि काल न आवन पावै // 12 // ऐन हैं तुव आसन नैना, जब लौ तुव प्रकृति फिरै ना। जब लो तुव बुद्धि सवाई, करि धर्म अगाऊ भाई // 13 // ओस जल ज्यों जोवन जै है, करि धर्म जरा फिरि ऐहै / ज्यों बूढ़ा बैल थकै है, कछु कारज करि न सके है // 14 // औ खिन संयोग वियोगा, खिन जीवन खिन मृत रोगा। खिनमें धन जोबन जावै, किहिविधि जगमैं सुख पावै 15 अंबर धन जीतब गेहा, गजकरन चपल धन एहा // तन दरपन छाया जानी, यह वात सदा उर आनी // 16 // ढाल परमादीकी। अः जम ले नित आव, क्यों नहिं धर्म सुनीज। नैन तिमिर नित हीन, आसन जोबन छीजै // 17 // कमला चले न पेंड़, मुख ढांक परिवारा। देह थक बहु पोपि, क्यों न लख संसारा // 18 // खन नहिं छोड़े काल, जो पाताल सिधार / बसै उदधिके बीच, जो कहुं दूर पधार // 19 // गन सुर राखे तोहि, राखै उदधि मथैया। तबहु न छोड़े काल, दीप पतंग परया // 20 // घर गो सौना दान, मणि औषध सब यो ही। मंत्र यंत्र करि तंत्र, काल मिट नहिं क्यों ही // 21 // 1 हाधीके कानके सदृश धन चंचल है। (15) नरकतने दुख भूरि, जो तू जीव सम्हारे। ' तौ न रुचै आहार, अब सब परिग्रह डार // 22 // चेतन गरभ मँझार, नरक अधिक दुख पायौ। बालपनेकी खेद, सब जग परगट गायौ // 23 // छिनमै धनकी सोक, छिनमै विरह सतावै / छिनम इष्टवियोग, तरुन कवन सुख पावै // 24 // _ ढाल दोहरेकी। मन भाई रे, चेत मन भाई रे // टेक // जरापनै दुख जे सहे, सुन भाई रे, सो क्यों भूल तोहि, चेत मन भाई रे॥ जो तू विषयनमै लग्यौ, मन भाई रे, आतमहित नहिं होइ, चेत मन भाई रे // 25 // झूठ पाप करि ऊपज्यौ, मन भाई रे, गरभ वस्यो वस पाप, चेत मन भाई रे / सात धात लहि पापते, मन भाई रे, अजहु पापरत आप, चेत मन भाई रे // 26 // नहीं जरा गद आइ है, मन भाई रे, कहां गयौ जम जच्छ, चेत मन भाई रे। जो निचिंत तू है रह्यौ, मन भाई रे, ए सब हैं परतच्छ, चेत मन भाई रे // 27 // टुक सुखकों भवदधि पस्यौ, मन भाई रे, पाप लहर दख देत, चेत मन भाई रे।। पकरौ धर्म जिहाजकों, मन भाई रे, सुखसौं पार करेत, चेत मन भाई रे / / 28 // saster Scanned with CamScanner

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