Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay
View full book text
________________ A US करन अहि मंत्र वर, मरण रिपु हनन सेर पतित उद्धरण जिन नाभिनंदा / - सकल दुख दहन घन, दिपत जस कनक सरव सुर असुर नर चरन वंदा // 12 // ......दर्शनस्तुति, छप्पय / ... TO तुव जिनिंद दिट्टियौं, आज पातक सब भर तुव जिनिंद दिठियौ, आज वैरी सव लजे। तुव जिनिंद दिहियौ, आज मैं सरवस पार तुव जिनिंद दिछियौ, आज चिंतामणि - जै जै जिनिंद त्रिभुवन तिलक, ...., आज काज मेरो सखौ / कर जोरि भविक विनती करत, आज सकल भवदुख टखौ // 13 // तुव जिनिंद मम देव, सेव मैं तुमरी करिही। " तुव जिनिंद मम देव, नाम तुम हिरदै धरिहौं। तुव जिनिंद मम देव, तुही साहिब मैं वंदा। तुव जिनिंद मम देव, मही कुमुदनि तुव चंदा // जै जै जिनिंद भवि कमल रवि, मेरो दुःख निवारिक। लीजै निकाल भव जालतें, अपनो भक्त विचारिक meam अष्टद्रव्य चढ़ानेका फल, सवैया इकतीसा / नीरके चढ़ायें भवनीर-तीर पावै जीव 1. 'चंदन चढ़ायें चंद सेवें दिन रात है। , अक्षतसौं पूजतें न पूजे अक्ष सुख जाकौ, .. फूलनिसौं पूर्जे फूलजातिमैं न जात है // . दीजै नइवेद तातें लीजै निरवेद पद, .... ...दीपक चढ़ायें ज्ञानदीपक विख्यात है। . धूप खेये सेती भ्रम दौर धूप खइ जाय, फलसेती मोक्ष फल अर्घ अघ घात है // 15 // वर्तमान चौवीसीके नाम, कवित्त (31 मात्रा)। ऋषभ अजित संभव अभिनंदन,सुमति पद्म सुपास प्रभु चंद। पुहपदंत शीतल श्रेयांस प्रभु, वासपूज्य प्रभु विमल सुछंद // स्वामि अनंत धर्म प्रभु शांति सु, कुंथु अरह जिन मल्लि अनंद। मुनिसुव्रत नमि नेमि पास, वीरेशसकल बंदौं सुखकंद // 16 // सिद्धस्तुति, सवैया इकतीसा / .. -ज्ञान भावके विलासी छैदी जिनौं भवफाँसी, कर्म शत्रुके विनासी त्रासी दुःख दोषके। चेतन दरबभासी अचल सुधामवासी, जिनकै है निधि खासी पोषे सुधा चोषके / / मन वच काय नासी सिद्ध खेतके निवासी, ऐसे सिद्ध सुखरासी ज्ञाता ज्ञेयकोपके। भव्य जगतै उदासी हैकै मनमैं हुलासी, तीन काल तिन्हैं ध्यासी वासी सुख मोषके // 18 // ... साधुस्तुति, कुंडलिया। पंच महाव्रत जे धरै, पंच समिति प्रतिपाल / पाँचौं इंद्री वसि करें, पडावसिक गहि चाल। 1 अचल मोक्ष स्थान / 2 जीवादि पदार्थ समूहके / 3 ध्यान करेगा। 1 इन्द्रिय / 2 बाण। Scanned with CamScanner

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 143