Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa

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Page 14
________________ (१३ ) विच्छेद तो जरूर हो गया है परन्तु जो विद्यमान है सो बराबर मान्य करने योग्य हैं । उन्हें आग्रहजन्य और नैमित्तिकादि हैं ऐसा कहना मूढताकी निशानी है। अगर कोई भी आस्तिक भाई इसबात पर सन्देह करेगा तो भी महती हानी उठायगा । इस लिए. हम उनको इतनी ही चिताबनी करते हैं कि श्रीहरिभद्रसूरि महाराज, श्रीहेमचन्द्राचार्यजी महाराज, नवाङ्गी टीकाकार श्रीमद् अभयदेवमूरि, श्रीमलयगिरि महाराज के वचनोंसे विरुद्ध आजकलके नास्तिकोंने जो बचन सुनाएं या जो लिखें हैं उनकों हलाहल जहर जानना चाहिए, और याद रखना चाहिए कि उनकी हवा भी बहुत बुरी है । इन नास्तिकोंके सरदारका परिचय तुमको अच्छी तरहसे है, जिसने पूर्वाचायों की निन्दा करके अपने अधमाधम विचारमय हृदयका पूर्णपरिचय दिया है। आजकल नास्तिक. छापेवाले अपने इस नवीन सरदारको देखकर फिदा फिदा हो रहे हैं परन्तु इस श्रुतधरआचार्यादिके निन्दककी स्तुतिसे हमारी क्या गति होगी इसबातको वे अज्ञानवश भूलही गये हैं। और जैनशैलीके अनभिज्ञ एक मूढ मनुष्यकी बातें ठीक मालूम पड़ती. हैं एवम् पूर्वधर प्रभावक पुरुषोंकी कथन कीहुई देवद्रव्यादि विषयक बातें ठीक मालूम नहीं पड़तीं । आह ! कैसी मूढ़ता, जिससे जराभी सन्मार्ग नहीं सूझता ! | ओह ! मैं बहुत दूर निकल गया, मेरे प्रिय पाठक घबराए होंगे और उस अंधेरे के उदाहरण को जाननेके लिए उत्सुक हो रहे होंगे अत एव इस विषयको यहीं छोड़ना. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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