Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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नहीं हैं । अमुक भाग नैमित्तिक है, अमुकभाग आग्रहजन्य है, अमुक भाग आलङ्कारिक है, अमुक भाग रूढिजन्य है " इत्यादि । हम उन नास्तिकशिरोमणियोंके हितार्थ लिखते हैं कि विनाकारण ऐसी भ्रमणामें पड़ कर " स्वयं नष्टः अन्यान् नाशयति " ऐसा क्यों करते हो । नरक निगोदोंके दुःखोंसे जरा डरो और शास्त्रका अवलम्बन करो । इनही अपलक्षणोंसे अनन्तवार दुर्गतिकी अनन्त वेदनाएं सहन करके पुनः पुनः उसी में पैदा हुए हो। कोई महान् पुण्योदयसे मनुष्यजन्म पाये हो उसे मिथ्यात्वमोहित होकर श्रीपूर्वधराचार्यों ने जो बातें सत्यरूप कथन कीहैं उनको “ आलङ्कारिक, अनुकरणजन्य, रूढिजन्य' आदि वाक्जालसे खोटी कहकर नाहक क्यों हार जाते हो । तथा नरक निगोदके अनन्त दुःखोको प्राप्त करनेकी तय्यारी क्यों करते हो । यह तो ऐसा हुआ कि जैसे किसी असत्य वादीने कहा कि फलाने ग्रंथमें अमुक विषय विल्कुल नहीं है, तब उस ग्रंथके अभ्यासीने कहा कि शर्त लगाओ तो हम दोखा देवें सब उस दुराग्रहींने दोसौ रुपयोंकी शर्त लगाई, जब वह पाठ उसी ग्रंथमेंसे उस अभ्यासीने दिखाया तब वह हठी कहने लगा कि यह पाठ तो मूल पुरुषके मूल विचार रूप नहीं है, तब वही पाठ दूसरी जगहसे बताया तो भी उस हरामीने शर्तके रुपैये बचानेके लिए झट कह दिया कि यह पाठ तो नैमित्तिक है, फिर भी उस ग्रंथके अभ्यासीने जिस विषयका उस हरामजादेने निषेध किया था उसी विषयका साधक पाठ उसी ग्रंथमें. अन्यस्थलपर बतायां
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