Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa

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Page 11
________________ (१०) अन्धेरेको दस दस पन्द्रह पन्द्रह आदमी बड़ी मुश्किलसे ढो सकते हैं उस अंधेरेको यह अकेली किस तरह ढोसकेगी अस्तु, हाथकङ्कणको आरसी क्या, सायंकालके समय वृद्धान घरके सब मनुष्यों के सामने वहुका ईरादा जाहिर किया । किमीने भी न माना कि यह बात सच्च होगी, तो भी सुमतिने उन लोकों से कहाकि आजकी रात तो देख लीजिए, जो मेरेसे आज बराबर कार्य न हो सके तो फ़िर कल आप ही कमर बांधियेगा । आखिरकार सबको समझा कर सुला दिये । ये लोग बहुत समयसे अंधेरा निकालनेकी अंध क्रियासे ऐसे थके हुए थे कि सोते ही बेभान होकर निद्रावश होगये बहुत दिन चढजानेके बाद जब उनकी आंखें खुली तो देखा कि घरमें उजेला ही उजेला हो रहा है। सब घरके मनुष्य सुमतिको रत्न मानने लगे। सासकी खुशीका तो पार ही न रहा । जब यह वात एकसे दूसरेके और दूसरेसे तीसरेके घर पहुंची तो क्रमसे सारे शहरमें फैल गई यह वात सुन सुनकर सब हैरान होगये और कहने लगे कि यह बात कभी नहीं बन सकती । जैसे आजकलके नास्तिकशिरोमणियोंको शास्त्रसम्मतकर्मफलमें भी आश्चर्य होता है, अथवा सूत्रानुकूलआचार्यप्रणीततत्त्व भारे कर्मियों की समझमें आ जाय तो भी अपनी प्रथम कीहुई प्रतिज्ञा भंग न होजाय इस डरके मारे अनन्तसंसारको बढ़ाने वाली मिथ्याकल्पना करके ( जैसा तमस्तरणके लेखमें बेचरदासने की है, ) कह देते हैं कि “ अमुक भागमें मूलपुरुषके मूल विचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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