Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa

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Page 9
________________ (८) करते हैं । परन्तु अनन्तभवमं छेदन भेदन जिसका फल है ऐसी बेचरदासके सम नीच बुद्धिको कदापि नहीं चाहते । क्योंकि जिन लोकोंकी आगमशास्त्रसे विरुद्ध क्रियाए हैं उन क्रियाओंका करना एकप्रकारसे अंधेरा ढोनेके सदृश है। जैसे एक अज्ञानपुर नामक नगरमें बुद्धिहीन नामक शेठ निवास करता था, उसके मूर्खदत्त नामक लड़का था। जब उस- मूर्खदत्तकी उम्र विवाह करने योग्य हुई तो सेठको चिन्ता हुई कि किसी योग्य घरकी लड़कीके साथ इसका लग्न करना चाहिए । इस कामके लिए वह अनेक स्थलों पर घूमता रहा । घूमते घूमते ज्ञानपुर नामक नगरमें प्रवेश करके बुद्धिशाली नामक सेठसे मुलाकात की और उसकी सुमतिनामक पुत्रीकी साथ अपने मूर्खदत्त लड़के का रिस्ता किया। कुछ समयके बाद बड़े मारोह के साथ शुभमुहूर्तमें उनका विवाह हो गया । जब सुमति अपने ससुरालमें आई तो पहली रात्रीको ही उसने वहां अजब ढंग देखा । घरके दस पन्द्रह जवांमर्द रात्रीके प्रारंभमें कमर बांधकर तय्यार हो गये और सब अपने अपने हाथमें एक एक टोकरा लेले कर एक दुसरेसे कहने लगे कि 'लो ढोओ-( फेंको ) लो ढोओ' तब इन लोकोंकी खाली टोकरियां चलानेरूप अज्ञानक्रियाको देखकर खुमति हेरान हो गई । वह विचारने लगी कि ये मूर्ख क्या कर रहे हैं ? अंधेरेमें खड़े खड़े खाली टोकरियां उठा उठा कर लो ढोओ, लो ढोओ' ऐसा कह रहे हैं न तो कुछ लेते हैं न कुछ गेरते हैं. यूंही व्यर्थ क्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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