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3 / श्री दान- प्रदीप
प्रकाश वर्णन
प्रथम प्रकाश :- मंगलाचरण, अभिधेय, दान के प्रकार और मेघनाद राजा की कथा–प्रथम श्रीआदिनाथ भगवान की मंगलाचरण के रूप में स्तुति करके - 'उन प्रभु से ही दान की परम्परा शुरु हुई है और आज तक दानधर्म से तीनों लोक के प्राणी सुखी हैं'–यह बताकर ग्रंथकार ने अपने गुरुदेव की स्तुति करके जिनशासन रूपी घर में दान रूपी दीपक को प्रकट करने के लिए (अभिधेय बताकर ) मोक्ष - सम्पदा का उत्कृष्ट कारण धर्म है, जिसके चार प्रकार- दान, शील, तप व भाव हैं, यह बताकर दान को मुख्य बताया है । यह दान उपरोक्त प्रमाण से तीन प्रकार का है। प्रथम ज्ञानदान के बिना किसी भी मनुष्य के द्वारा स्वल्प भी धर्म करना सम्भव नहीं है । अभयदान रूपी मेघ के वर्षण से तृण के अंकुरों की तरह सभी धर्म वृद्धि को प्राप्त होते हैं और उस वर्षण के बिना शुष्क हो जाते हैं। इसी प्रकार सुपात्र का पोषण करने से तीसरा उपष्टम्भ दान समस्त धर्मों पर आवश्यक रूप से उपकार करता है । शील, तप और भाव-ये तीन प्रकार के धर्म सर्व रूप में यतियों के जीवन में ही सम्भव होते हैं। अतः यतियों को अन्नादि उपष्टम्भ दान करने से शीलादि धर्म का आराधन हो सकता है, जिससे महान पुरुषों ने दान को प्रधान धर्म बताया है। तीर्थकर भी चारित्र ग्रहण करने के पूर्व एक वर्ष तक वर्षीदान करते हैं और केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद भी पर्षदा में सबसे पहले दानधर्म की देशना प्रदान करते हैं। इस प्रकार दानधर्म की अनेक प्रकार से उपयोगिता और मुख्यता बताकर चित्त, वित्त और पात्र - इन तीनों की शुद्धि शास्त्रानुसार विस्तारपूर्वक बताते हुए उस पर मेघनाद राजा का चरित्र दिया गया है। मेघनाद राजा ने अपने पूर्वभव में धनराज नामक वणिक के रूप में दानधर्म का अपूर्व आराधन किया था, जिससे मेघनाद के भव में उसे अपरिमित लक्ष्मी, राज्य - वैभवादि प्राप्त हुआ था। इसके साथ ही नागेन्द्र के तुष्ट होने से सभी मनवांछित वस्तु- प्रदाता एक दिव्य रत्नमय कटोरा और त्रैलोक्य-विजय हार प्राप्त हुआ था । अन्त में अनेक वर्षों तक राज्य का पालन करके अपनी शील - सम्पन्न रानी मदनसुन्दरी के साथ चारित्र ग्रहण करके केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष के अधिकारी बने। इस मेघनाद राजा के चरित्र में अन्य दो गर्भित कथाएँ और श्रीधर्मघोष नामक मुनिश्री की देशना समस्त पाठकों को आनन्द उत्पन्न करने के साथ दानधर्म की प्रेरणा भी प्रदान करती है। इस प्रकार प्रथम प्रकाश पूर्ण होता है ।
द्वितीय प्रकाश :- इसमें सबसे पहले ज्ञान-दान के प्रकार, इन प्रकारों के आचार का वर्णन और उस पर विजयराजा का दृष्टान्त है। पहले दान के तीन भेद - ज्ञान, अभय और उपष्टम्भ कहे गये हैं। उनमें से ज्ञान के मति आदि पाँच भेद बताकर श्रुत की मुख्यता बतायी गयी है। अभयदान सर्व-सम्पत्ति का कारण है । धर्म के उपष्टम्भ की पुष्टि के लिए पात्र को