Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir M दूजो औषधि दान सु देय । पर भव निरमल तनसो लेय॥ होय निरोग ताको जु शरीर । कामदेव सम गुन गंभीर ॥७॥ तीजो शास्त्रदान सुखकार । तासों उपजै बुद्धि अपार ॥ BI पंडित द्वै सबमें शिरमौर । ताकी सरवरि करन और ॥८॥ उत्तम कुलमें उपजे जाय । दुख दरिद्र सब जाय नशाय॥ | चौथो अभय दान सुखकार । सो जानो सबमें सिरदार ॥६॥ B मारत देखे जियकों कोय । ताके प्रान बचावै सोय ॥ कै तौ हुकम थकी अब जान । सो जु बचावै साके प्रान ॥१०॥ ना तरु द्रव्य जु दै करि सोय । ताके प्रान बचावै कोय ॥ द्रव्यहुकी जो सकति न होय । तन बलसों जुबचावै सोय ॥११॥ जो एक हु सकति नहिं होय । मनमें करुना कीजो सोय ॥ ameereemeneoneerworrenveera BABARABAVar For Private And Personal Use Only

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