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श्रावतमे श्रावक चलते फिरते त्रस्य जीवकुं जानबुझके मारनेकी बुद्धि करके न मारे, घुणा हुवा अन्ननट्टीमें चुनावें नही जर घुणा अन्न पीसें पीसावें नही जर दखें दखावें नही जर सिरका गेरे नही जर मखीका गता तो नही जर गोबर समावें नही जर विना गने पाणी पीवे नही जर रस चलित पदार्थको वर्ते नहीथर्थात् जिस खाने पीनेकी चीजका अपने वर्ण गंध रस स्पर्शसे प्रतिपदा अर्थात् मी सें खट्टा जर खट्टेसें कमुया वर्ण गंध रस होय गया जेर जिस धादामें तथा मिशन्न पकान बुरा थादिमें खट पर जाय तो उसे बरतें नही अर्थात् बहुत कालके लियें वस्तु संचय करके रके नही जेसेकि चतुर्मासमें था तथा पंह दिनकें जपरांत काल तक संचय करें नही जर ग्रीष्मकाल गर्मी में १५ दिन व एक महीनसें उपरात संचय करें नही जर शीत कालमें एक महीने तथा देढ महीनसें उपरांत संचय करें नही जर चैतके महीनेसें लेकर थासोजके महीने तक रोटी दाख श्रादिक ढीली वस्तु रातवासी रखके खाय नही ऐसे पहले अनुव्रतके पांच अतिचार कहें हैं. १ प्रथम नौकरको तथा पशु घोमा बैल यादिकको तथा पदी काग सूया