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गुनी परे तीजे देवलोकरे इंपरे पाउले शवनी परे २५, उतकृष्ट वीनो करे तो जीवरो||| परम कल्याण होवे किणनी परे वाहुबलजीनी परे २६, उत्कृष्ट दलाली करे तो जी वरो परम कल्याण होवे किनी परे कृश्न महाराजनी परे २७, उत्कृष्टो अन्निग्रह करे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे दंढण मुनिराजनी परे २०, शत्रु मित्र नपर सरिखा नाव राखे तो जीवरो परम कल्याण होवे किनी परे नदाराजानी परे २ए, अनर्थरो हेतु जाणीने दया पालो तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे धर्मरुचीखणगारनी परे ३०, कष्ट पड्या सिखमें दृढ रहे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे चंदनबाला वा जणकी मातानी परे. कर्मविपाक प्रकरणमेंसे ३० सामान्य कर्मबंध फल कहते है. यथा १ प्रम निर्धन किस कर्मसें होवे, जतर पराया धन हरणेसें.२ प्रम दरिखी किस कर्मसें होवे, उत्तर दान देतेको वर्जनेसें, ३ प्रम धन तो पावें परंतु नोगना नही मिलें किस कर्मसें, उत्तर दान देकें पछतावनेसें, ४ प्रण अकुली अर्थात् जिस पुरुषके पुत्र पुत्री न होय किस कर्मसे होवें, उत्तर जो वृद रस्तेके नपरदो जिनसें अनेक पशु और मनु