Book Title: Chattrish Bol Sangraha
Author(s): Agarchand Bherudan Sethia
Publisher: Agarchand Bherudan Sethia

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Page 364
________________ ***** ॥ हा॥ वासी वीकानेररा, सुश्रावक अतिज्ञान । शवंश घर सेठिया, अपचंद नैरुदान ॥१॥ नमि दूगी तास घर, वांचति निर्मल बुछ । बहु सिकांत संचय करे, मुनिजन कीजों सुंछ।शा || केवलझानीकुं सदा, बं वे कर जोम । गुरु मुखतें धारण करो, अपणो जिद्दकुं गेम || जिनवचन तहमेव सच, समन्नाव नहि ताण । जतनासुं वाचो सही, एद प्रचुन। वाण या सूत्र अर्थवरुनय वचन,तिनकेन्नेदअपार अल्पबुझिअग्यान हुं, कविजन लेहुं सुधार ।।। श्रदर पद उगेअधिक,आघोपीगेहोय । अशुध लिख्योहोय तेहनो, मिहासकम तेह ॥६॥ 6 0***** aan. sceneKEHRA****** ॥ति श्री उत्तीस बोल समाप्त ॥ 19

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